Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 551
________________ अगारधर्म सञ्जीवनीटीका अ० ७ पुरुषार्थविषयक-उपदेशः ४५३ समणं भगवं महावीर वदित्ता नमसित्ता पाडिहारिएणं पीढफलगजाव उवनिमतित्तए” एवं संपेहेइ, सपेहित्ता उट्टाए उट्टेड, उट्टाए उद्वित्ता समणं भगव महावीरं वदड नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-"एव खल्ल भंते । मम पोलासपुरस्स नयरस्स पहिया पंच कुंभकारावणसंया,तत्थ णं तुम्भे पाडिहारिय पीठ जाव संथारयं ओगिण्हित्ताण विहरइ ॥१९३॥तए ण समणे भगव महावीरे सादलपत्तस्स आजीविओवासगस्स एयमट्र पडिसुणेड, पडिसु. सम्पदा तव्यानि सत्य फलानि अभिविचरितानि कर्माणि क्रिया तत्सपदा-तत्स मृध्या सम्पयुक्त , पूर्वाभवोपार्जिततीर्थकरनामगोत्रकर्ममभावेण गोकादि अष्टम प्रत्याहारयुक्त तन्ड्रेयः खलु मम श्रमण भगवन्त महावीर पन्दित्वा नमस्यित्वा प्रातिहारिकेण पीठफलक-यावद्रुपतिमन्त्रयितुम्" एव सप्रेक्षते, सप्रेक्ष्य उत्थयोतिप्ठति, उत्थयोत्थाय श्रमण भगवन्त महावीर वन्दते नमस्यति, रन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्-एव खलु भदन्त ! मम पोलासपुरानगराद्वहि पञ्च कुम्भकारापणशतानि, तत्र खलु यूय मानिहारिक पीठयावत्सस्तारकमवगृह्य विहरत ।। १९३ ।। से उपार्जित तीर्थकर नाम गोत्रके प्रभावसे होनेवाले अशोकवृक्षादि अष्टमहाप्रतिहारसे युक्त अमण भगवान महावीर स्वामी महामाहन हैं, इसलिए इन्हें वन्दना नमस्कार करके पडिहारे पीठ फलक आदिके लिए आमन्त्रित करना ठीक है।" ऐसा विचार कर ऊठा। ऊठकर श्रमण भगवान् महावीरको वन्दना नमस्कार किया फिर बोला"हे भदन्त !मेरे पोलासपुर नगरके वाहार पाँचसौकुमारकी दुकाने हैं, वहा आप पडिहारे पीठ यावत् सस्तारक ग्रहण करके विचरे" ॥ १९३ ।। સ્થાનકની આરાધના કરવાથી ઉપાર્જિત તીર્થ કરનામશેત્રના પ્રભાવથી થવાવાળા અશોક વૃક્ષાદિ આઠમહા પ્રતીહારથી યુક્ત શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી મહામાહન છે, માટે તેમને વદન-નમસ્કાર કરી પડિહાર પીઠ ફલક આદિને માટે આમંત્રિત કરવા એ ઠીક છે ' એમ વિચારીને તે ઉઠ અને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વદના નમસ્કાર કરીને બે “છે ભદન્ત! પિલાસપુર નગરની બહાર મારી પાસે કભારની દુકાને છે, ત્યાં આપ પસ્કિાર પીઠ યાવત સસ્તારક ગ્રહણ કરીને વિચરે” (૧૯) શ્રમણ ભગવાન્ મહાવીર

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