Book Title: Tulsi Prajna 2006 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ चतुर्थ अंग भगवती सूत्र के अनुसार संख्यान या अंकों के विज्ञान का ज्ञान जैन साधुओं की एक प्राथमिक आवश्यकता थी। यहां सब अंग-उपांगों की सूची प्रस्तुत हैं। जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में 11 अंगों एवं 12 उपांगों सहित निम्नांकित सूची के ग्रन्थों को आगम की मान्यता प्राप्त है अंग 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग (ठाणं) 4. समवायांग 5. भगवती सूत्र (व्याख्या प्रज्ञप्ति) 6. ज्ञाताधर्म कथांग 7. उपासक दशांग 8. अन्तकृत दशांग 9. अनुत्तरोपपातिक दशांग 10. प्रश्न व्याकरणांग 11. विपाकसूत्र उपांग 1. औपपातिक 2. राजप्रश्नीय 3. जीवाभिगम 4. प्रज्ञापना 5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 6. सूर्य प्रज्ञप्ति 7. चन्द्र प्रज्ञप्ति 8. निरयावलिया 9. कल्पावंतसिका 10. पुष्पिका 11. पुष्प चूलिका 12. वृष्णिदशा __ मूल सूत्र छेद सूत्र 1. आवश्यक सूत्र 1. निशीथ 2. दशवैकालिक सूत्र 2. महानिशीथ 3. उत्तराध्ययन सूत्र 3. वृहत्कल्प 4. अनुयोगद्वार सूत्र 4. व्यवहार 5. पिण्डनियुक्ति 5. दशाश्रुतस्कन्ध 6. ओघनियुक्ति 6. पंच कल्प इसके अतिरिक्त पइन्ना शीर्षक के अन्तर्गत 10 अन्य ग्रन्थ भी हैं, जिन्हें मिलाकर कुल 45 आगम होते हैं। कतिपय अन्य विचारधारा के व्यक्ति 39 अन्य ग्रंथों को आगमों | 16 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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