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चरक संहिता में दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित एवं कल्पित-इन पांच प्रकार के स्वप्नों का उल्लेख मिलता है।'
दृष्टं श्रुतानुभूतं च, प्रार्थितं कल्पितं तथा। भाविकं दोषजं चैव, स्वप्नं पंचविधं विदुः॥
रोम के विख्यात लेखक सिसरो ने ओनीरोक्रिटिका नामक पुस्तक में स्वप्न के पांच भेदों का उल्लेख किया है- 1. सांकेतिक, 2. भविष्य सूचक, 3. इच्छापूर्ति रूप, 4. दु:स्वप्न, 5. दिव्य स्वप्न।
मनोवैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से स्वप्नों का वर्गीकरण इस प्रकार किया हैगति - गति या क्रिया से सम्बन्धित स्वप्न। 35 प्रतिशत स्वप्न गति युक्त होते हैं।
इच्छापूर्ति - दमित इच्छाओं की प्रकारान्तर से पूर्ति करने वाले स्वप्न। इस प्रकार के स्वप्नों की भाषा संकेतात्मक होती है।
पुनरावर्तक - बार-बार दिखाई देने वाले स्वप्न।
चिन्ता - चिन्ता उत्पन्न करने वाले स्वप्न, जैसे-व्यापार में घाटा या प्रिय व्यक्ति का वियोग आदि।
भविष्यसूचक - भविष्य सम्बन्धी सूचना देने वाले स्वप्न। भयानक - डर या भय पैदा करने वाले स्वप्न। सामूहिक - एक ही प्रकार का स्वप्न अनेक व्यक्तियों द्वारा देखा जाना।
दण्ड - स्वप्न में दण्ड या कष्ट दिया जाना देखना। ये स्वप्न अचेतन में दण्ड भोगने की इच्छा व्यक्त करते हैं।
मृत्यु - स्वप्न में परिचित व्यक्तियों या स्वयं को मृत देखना अथवा मृत व्यक्तियों को जीवित देखना।
प्रतिरोध - सामाजिक नियमों या प्रथाओं का प्रतिरोध करने वाले स्वप्न ।' शुभाशुभ स्वप्नों की संख्या
स्वप्नों की संख्या निर्धारित करना अत्यन्त कठिन है। भगवती टीका के अनुसार स्वप्न असंख्येय हो सकते हैं। स्वप्नों के फल के बारे में भारतीय ऋषि-महर्षियों ने इतना चिंतन किया कि यदि उन सबका संकलन किया जाए तो एक पूरा ग्रंथ तैयार हो सकता
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तुलसी प्रज्ञा अंक 130
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