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स्वप्न और साहित्य-लेखन
साहित्य लेखन के साथ भी स्वप्न का सम्बन्ध रहा है। बाणभट्ट की संसार प्रसिद्ध रचना कादम्बरी की कल्पना स्वप्न की ही देन है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गीताञ्जलि की कल्पना स्वप्न में की थी। विदेशों में अनेक विश्व प्रसिद्ध रचनाएं स्वप्नों से प्रेरणा पाकर लिखी गयीं। स्वप्नों से प्राप्त जानकारी के आधार पर कथाएं लिखने वाले कथाकार राबर्ट लूइस का नाम सबसे आगे है। डॉ. जेकल एवं मि. हाइडे आदि रोमांचक कथाएं स्वप्न के आधार पर लिखी गई हैं। 18 वीं सदी में प्रसिद्ध उपन्यास लेखिका अन रेडक्लिफे ने अपने सभी उपन्यास स्वप्नों के आधार पर लिखे हैं। वह रात को गरिष्ठ भोजन खाकर सोती थी और रात्रि में देखे स्वप्नों को सुबह लिपिबद्ध कर देती थी। सरदारसती को स्वप्न में देवता जो कुछ बताते उसके आधार पर जयाचार्य ने कुछ ग्रंथों की रचना की। निद्रा के प्रकार
नींद और स्वप्न में अविनाभावी सम्बन्ध है। सघनता और हल्केपन के आधार पर जैनदर्शन में नींद के पांच भेद स्वीकार किए हैं
1. निद्रा – सामान्य नींद। 2. निद्रा निद्रा – बैठे-बैठे नींद लेना। 3. प्रचला-खड़े-खड़े नींद लेना। 4. प्रचला प्रचला-चलते हुए नींद लेना। 5. स्त्यानद्धि-इस नींद में व्यक्ति बंदरों की भांति बडी-बडी छतें लांघ लेता है
और किसी की हत्या करके वापिस अपने स्थान पर आकर सो जाता है। हरीश पांडे नामक व्यक्ति रात को उठकर कापी में रामायण की कुछ चौपाइयां लिखकर सो गया। सवेरे उठकर उसने जब कापी देखी तो वे चौपाइयां उसको बिल्कुल याद नहीं थीं। यह जड़ निद्रा स्यानद्धि के अन्तर्गत आती है।
डॉ. क्लीटमां एवं एसेरिन्स्की ने प्रयोगों के बाद नींद की दो अवस्थाओं को स्वीकार किया है
1. जिसमें आंखों की बंद पुतलियों के पीछे आंखों की गति तीव्र होती है, ऐसा लगता है मानों वे किसी दृश्य का अवलोकन कर रही हैं। (रैपिड मूवमेंट आई. ई. एम.) इसे अंग्रेजी में रेम तथा हिंदी में संक्षेप में संपुती कहा जाता है। संपुती का स्वप्न के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
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