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7. घर-घर प्रेत का नर्तन जिसका हार्द था कि लौकिक देवताओं की पूजा बढ़ेगी ।
8.
तालाब का मध्य भाग सूखा लेकिन किनारे पर पानी छलछला रहा है इसका तात्पर्य था कि आर्यावर्त जो धार्मिक संस्कृति का केन्द्र है वहां धर्म का प्रभाव कम हो जाएगा उसके आसपास के क्षेत्र में धर्म के केन्द्र रहेंगे ।
9. मिट्टी से ढका हुआ रत्नों का ढ़ेर, जिसका तात्पर्य था कि ज्ञान और श्रद्धा रूपी रत्न अज्ञान और अश्रद्धा से दब जाएगा । साधुओं में धीरे-धीरे शुक्ल ध्यान क्षीण हो
जाएगा।
10. कुत्ता मिठाई खा रहा है, जिसकी लोग श्रद्धा से पूजा कर रहे हैं जिसका अर्थ था कि अच्छे लोग नीच व्यक्तियों की सेवा करेंगे। नीच व्यक्ति उच्चता प्राप्त करेंगे।
11. तड़पता हुआ जवान बैल पास से निकलना, जिसका हार्द था कि युवक लोग दीक्षित होंगे पर शिथिलाचार के कारण जिनशासन को बदनाम करेंगे।
12. दो बैलों को कंधे से कंधा मिलाकर जाते हुए देखना जिसका अर्थ था कि धर्म प्रचार हेतु अकेला कोई व्यक्ति साहस नहीं कर सकेगा ।
13. चन्द्रमा पर धुंध छाई हुई देखना जिसका तात्पर्य था कि आत्मा पर आवरण बढ़ेगा । धीरे-धीरे तत्त्वज्ञान नष्ट हो जाएगा।
14. मेघ से ढंका हुआ सूर्य, जिसका तात्पर्य था कि कोई सर्वज्ञ नहीं होगा ।
15. छायाहीन सूखा पेड़ देखने का अर्थ था कि धर्म का वृक्ष तृष्णा के ताप से सूख
जाएगा।
16. सूखे पत्तों का ढेर, जिसका फल था कि औषधियां जड़ी-बूटियां आदि प्रभावहीन होंगी, वैद्य भी लोभी होंगे।
महावीर के दश स्वप्न
महावीर ने साधना काल में अन्तर्मुहूर्त्त नींद ली, जिसमें उन्होंने दस महास्वप्न देखे । महावीर द्वारा देखे गए स्वप्न और उनका फल इस प्रकार है
1. विशालकाय पिशाच का ललकारना और महावीर द्वारा उसे पराजित करना । ताल पिशाच को पराजित करने का फल है मोह कर्म का नाश ।
2. श्वेत पंखों वाला बड़ा सा नरकोकिल, जिसे देखने का फल था - महावीर के शुक्लध्यान का विकास ।
3. रंग बिरंगे पंखों वाला नरकोकिल, जिसका तात्पर्य था द्वादशांगी का निरूपण ।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
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