Book Title: Tulsi Prajna 2006 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ था 4. वैडूर्यरत्न से बनी दो मालाएं, जिनमें एक माला बड़ी तथा दूसरी छोटी थी। वैडूर्य रत्न की दो मालाओं का फल था- महावीर द्वारा अगार और अनगार धर्म का निरूपण। 5. सफेद रंग की गायों एवं बछड़ों के एक बड़े समूह का महावीर के सामने घूमना, जिसका फल था चतुर्विध धर्मसंघ की स्थापना। 6. कमलों से परिपूर्ण सुंदर जलाशय, जिसका तात्पर्य था चार प्रकार के देवों द्वारा सेवा। 7. समुद्र को भुजाओं द्वारा तैरना, जिसका तात्पर्य था- संसार समुद्र का पार पाना। 8. रात्रि के सघन अंधकार को दूर करने वाले प्रभास्वर सूर्य का उदय जिसका तात्पर्य था- केवलज्ञान की उपलब्धि। 9. महावीर द्वारा मानुषोत्तर पर्वत को अपनी आंतों से घेरना, जिसका तात्पर्य था दिग्दिगन्त में महावीर के यश का विस्तार। 10. महावीर द्वारा मेरु पर्वत के सर्वोच्च शिखर पर आरोहण जिसका फल था -व्यापक धर्म का प्रतिपादन। चन्द्रगुप्त मौर्य के स्वप्न राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने पौषध अवस्था में रात्रि के तीसरे प्रहर में सोलह स्वप्न देखे। स्वप्नों का फलादेश जानने हेतु वह अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी के पास गया। आचार्य भद्रबाहु ने अपने ज्ञानबल से उन स्वप्नों का फलादेश बताया। 1. कल्पवृक्ष की शाखा टूटी हुई है। इसका फल बताते हुए आचार्य ने कहा कि अनागत . काल में कोई भी राजा जैन दीक्षा ग्रहण नहीं करेगा। 2. असमय में सूर्यास्त। इसका अर्थ है कि भरतक्षेत्र में अब किसी भी व्यक्ति को केवलज्ञान प्राप्त नहीं होगा। 3. पूर्णिमा के चन्द्र में छिद्र। इसका तात्पर्य है कि एक भगवान् द्वारा प्ररूपित धर्म में एक ___आचार्य की परम्परा न रहकर अनेक आचार्य एवं पृथक्-पृथक् सामाचारियां रहेंगी। 4. भयंकर अट्टहास एवं कौतूहल करने वाले भूतों का नृत्य। इसका अर्थ है कि कुगुरु, कुदेव एवं कुधर्म का प्रभाव बढ़ेगा। स्वच्छंदचारी और वेषधारी साधुओं को अज्ञानी व्यक्ति मान्यता देंगे। 5. बारह फणों वाला कृष्णवर्णी सर्प, जिसका फल था बारह-बारह वर्षों के कई दुर्भिक्ष पड़ेंगे, जिनमें कुछ आगमों का विच्छेद हो जाएगा। अपरिग्रही व्यक्तियों के द्वारा भी परिग्रह को प्रोत्साहन दिया जाएगा तथा सच्चे व्यक्ति निंदा के पात्र होंगे। 38 - तुलसी प्रज्ञा अंक 130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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