________________
वंश परम्परा विज्ञान की भाषा में पृथ्वी में भी कुछ अति सूक्ष्म जीव होते हैं जिन्हें विषाणु (Virus) कहते हैं। ये विषाणु जैसे ही किसी जीवित (Linving Media) माध्यम के सम्पर्क में आते हैं तो इनकी असंख्यात गुना (Infinite) वृद्धि होती है। इनका शरीर एक कोशिका से बनता है जिसे बैक्टीरिया कहते हैं। उसमें एक केन्द्रक होता है। केन्द्रक में D.N.A होता है। उसमें वंश-वृद्धि के गुण होते हैं। इसी कारण यह एक कोशीय जीव चयापचय की क्रिया करता है। वंश-वृद्धि का घटक तत्त्व D.N.A है, जो एक कोशीय जीव में भी पाया जाता है।' क्लोनिंग अर्थात् प्राणी प्रतिलिपिकरण
किसी जीव विशेष का जैनेटिकल प्रतिरूप पैदा करना अर्थात् डोनर पेरेन्ट (नर या मादा कोई एक) की हू-ब-हू शक्ल सूरत (प्रतिलिपि) पैदा कर देना क्लोनिंग कहलाता है। इसे जैन कर्म-सिद्धान्त के अनुसार शरीर-नाम-पर्याप्ति कर्म के विपाक का फलित माना जा सकता है। किसी भी जीव के गुणों का निर्धारण उसकी घटक कोशिकाओं के अन्दर स्थित गुणसूत्रों के द्वारा होता है। विभिन्न विकसित प्राणी लैंगिक प्रजनन की विधि द्वारा अपनी सन्तानों को उत्पन्न करते हैं, जिसमें नर एवं मादा की जनन कोशिकाओं के आधे गुणसूत्र (वंशसूत्र) मिलकर एक नई रचना करते हैं जिनमें जनक माता-पिता के गुण मिले रहते हैं। क्लोनिंग में मात्र नर अथवा मादा की सामान्य दैहिक कोशिकाओं के गुणसूत्रों के द्वारा सन्तान उत्पन्न की जाती है जो कि स्वाभाविक रूप से उनके दाता व्यक्ति (जनक) जैसी ही होती है। अविकसित जीवों, पेड़ पौधों आदि में तो यह क्रिया कायिक प्रजनन, अलैंगिक प्रजनन आदि के रूप में प्राकृतिक रूप में पाई जाती है। परन्तु आधुनिक विज्ञानिकों ने विकसित जीवों, चूहों, भेड़ों एवं मनुष्यों तक को इस विधि से उत्पन्न करना शुरू कर दिया है। स्तनधारी पशुओं में क्लोन बनाने ( पैदा करने ) की तकनीक
। प्रत्येक पशु तथा वनस्पति में अनेक कोशिकाएं (Cells) पाई जाती हैं। मनुष्य के शरीर में इन कोशिकाओं की कुल संख्या लगभग 100 खरब हैं। प्रत्येक कोशिका (Cell) अपने आप में पूर्ण जीवित इकाई होती है। कोशिका के केन्द्र में एक नाभिक (Nucleus) होता है जिसे केन्द्रक भी कहते हैं । केन्द्रक के अन्दर उस जीव के गुणसूत्र (वंशसूत्र) होते हैं। मनुष्य की कोशिका में गुणसूत्रों (Chromosomes) की संख्या 46 होती हैं। इन गुणसूत्रों में ही आनुवंशिकी (Heredity) के सभी गुण मौजूद होते हैं . गुणसूत्रों की रचना डी.एन.एन. (D.N.A) तथा आर.एन.ए. (R.N.A) नामक रसायनों
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
-
-
73
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org