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भी उनका अंकन करती हैं और अन्त में उन सभी अंकनों का आधार बनता है संस्कार सूत्र "जीन्स"। इन दोनों के स्वतंत्र अध्ययन से जहां दोनों को समझने में सुविधा होगी, वहीं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समस्याओं को सुलझाने में मार्गदर्शन भी मिलेगा। ____ कर्म सिद्धान्त अति सूक्ष्म है। बुद्धि से परे का सिद्धान्त है। वंश-परम्परा विज्ञान ने कर्म सिद्धान्त को समझने में सुविधा प्रदान की है। जीन व्यक्ति के आनुवंशिक गुणों के संवाहक है। प्रत्येक विशिष्ट गुण के लिए विशिष्ट प्रकार का जीन होता है। ये आनुवंशिकता के नियम कर्मवाद के संवादी नियम है। यह स्थूल शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं (Biological Calls) से निर्मित है। मानव शरीर में लगभग साठ-सत्तर खरब कोशिकाएं हैं। इन कोशिकाओं में गुणसूत्र होते हैं, जिन्हें क्रोमोसोम (Chromosomes) कहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र एक लाख जीन से बनता है। जीन सारे संस्कार सूत्र हैं। मानव शरीर की प्रत्येक कोशिका में छीयालीस क्रोमोसोम होते हैं। इन्हें वंश सूत्र की संज्ञा भी दी गई है। जीव विज्ञान के अनुसार प्रत्येक कोशिका या बीजकोष (Germ Plasm) में 23 पिता के तथा 23 माता के वंश सूत्रों (Chromosomes) का समागम होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इनके संयोग से 16,77,216 प्रकार की विभिन्न संभावनाएं अपेक्षित हो सकती हैं। यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो वातावरण, परिस्थिति, पर्यावरण, भौगोलिकता, आनुवंशिकता, जीन और शरीर की ग्रन्थियों के विभिन्न स्रावों द्वारा रासायनिक परिवर्तन, ये सभी कर्म सिद्धान्त के संवादी सूत्र हैं।
जीन हमारे स्थूल शरीर का अवयव है और कर्म हमारे सूक्ष्मतम शरीर का अवयव है। दोनों शरीर से जुड़े हुए हैं, एक स्थूल शरीर से और दूसरा सूक्ष्मतम शरीर से। यह सूक्ष्मतम शरीर कर्म शरीर है। मृत्यु का संबंध केवल स्थूल शरीर से है। सूक्ष्म शरीर मरणोपरान्त भी विद्यमान रहता है। जैन दर्शन में जिसे सूक्ष्म शरीर (तैजस, कार्मण) कहा गया है, सांख्य दर्शन में उसे लिंग शरीर कहा जाता है। संसारावस्था में ये निरंतर साथ रहते हैं । इस चर्चा को वैज्ञानिक संदर्भ में इस प्रकार कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक पदार्थ की चार अवस्थाएं मानते हैं :-ठोस, द्रव्य, गैस व प्लाज्मा। एक अवस्था और खोजी गई जिसे प्रोटोप्लाज्मा या जैवप्लाज्मा कहा जाता है। अध्यात्म-योग की भाषा में प्रोटोप्लाज्मा हमारी प्राण शक्ति है, जो हमारे अस्तित्व का सटीक प्रमाण है। वैज्ञानिकों का यह कहना है कि प्रोटोप्लाज्मा अमर तत्व है। मृत्यु के पश्चात् भी यह रसायन, जो हमारी कोशिकाओं में रहता है, शरीर से अलग होकर वायुमंडल में बिखर जाता है। वही प्रोटोप्लाज्मा निषेचन की क्रिया के समय 'जीन्स' में शिशु के साथ पुनः चला जाता है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 130
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