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सुत्तनिपात, थेरगाथा और थेरीगाथा आदि पालि के मुक्तक काव्य कहे जा सकते हैं। इसी अध्याय के दूसरे अनुच्छेद में हमने प्राकृत और अपभ्रंश परम्परा के मुक्तक ग्रन्थों की समीक्षा की है, जिसमें जैन आगम साहित्य के मुक्तकों के अतिरिक्त गाथासप्तशती और वज्जालग्गं प्राकृत के प्रमुख मुक्तक ग्रन्थ सुनिश्चित होते हैं । इस अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि प्राकृत के अन्य काव्य ग्रन्थों में भी अनेक मुक्तक गाथाएँ उपलब्ध हैं। इस अध्याय के अन्त में संस्कृत के प्रमुख मुक्तक ग्रन्थों और भाषाओं के प्रमुख मुक्तक ग्रन्थों की भी समीक्षा की गयी है। ___ तृतीय अध्याय में हमने पालि और प्राकृत के भाषा में रचित विभिन्न ग्रन्थों में धर्म के विविध रूपों का विवेचन किया है। उनमें जब हम आगमिक परम्परा के साहित्य का अध्ययन करते हैं तो विशुद्ध रूप से धार्मिक मुक्तकों का स्वरूप भी स्पष्ट होता है। इसमें से पालि व प्राकृत के आगम व लौकिक काव्यों में धार्मिक मुक्तकों का विषयवार चयन किया गया है। ये धार्मिक मुक्तक किसी धर्म विशेष की बात नहीं करते हैं परन्तु धर्म को कैसे धारण किया जाये, इसका प्रतिपादन करते हैं। जो मनुष्य अपने जीवनकाल में इन धार्मिक विचारपरक सुभाषितों को पढ़कर, सुनकर अपने जीवन में उतार लेता है, वह अपना धर्म सभी लोकों में प्रकाशित कर पुण्य अर्जित करता है।
पालि व प्राकृत के ग्रंथों में निम्न प्रकार के धार्मिक कथनों का चयन किया है। यथा-अप्रमाद, अहिंसा, अहंकार, त्याग, कर्म, कषाय विजय, कामभोगों पर विजय, तप, धर्म, दर्शन, ध्यान, नम्रता, क्षमा, अपरिग्रह, पुण्य, ब्रह्मचर्य, मृदुता, मंगलाचरण, शील, सत्य आदि। जैनागमों तथा पालि त्रिपिटक के ग्रन्थों में प्रमाद त्याग के संबंध में अनेक स्थलों पर विस्तार से विवेचन प्राप्त होता है। अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य शिक्षा के लिए बाधक हैं। अविनीत, स्वादु, क्रोधी और कपटी शिक्षा देने के योग्य नहीं होते। मनुष्य जन्म मिलना बड़ा दुर्लभ कहा गया है। पूर्व संचित कर्मों के क्षय के लिए ही मनुष्य देह धारण करनी चाहिए। बोलने के पहले जो कुछ बोला जाये, उस पर विचार कर लेना चाहिए। कभी ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे कलह बढ़े। झठे और कठोर वचन से सदा दूर रहना चाहिए। जो अप्रमत्त होता है वह शीघ्र मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जिन्हें तप, संयम, क्षमा और ब्रह्मचर्य प्रिय है वे स्वर्गलोक अथवा मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो बिना धर्माचरण किए परलोक जाता है वह अनेक व्याधियों से पीड़ित होकर अत्यंत दु:खी होता है।
__ नैतिक और आचारमूलक मुक्तक काव्यों में गौरवशाली जीवन व्यतीत करने के लिए शरीर की क्षणभंगुरता, सत्य, शम, दम, विवेक, विद्वत्ता, विद्या का महत्त्व, मनस्विता,
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तुलसी प्रज्ञा अंक 1300
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