________________
6. समागत देव - विमान का पुनः लौटना, जिसका अर्थ है जंघाचारण, विद्याचारण आदि लब्धिधारी साधु भरत क्षेत्र में नहीं रहेंगे।
7. कूड़े के ढ़ेर में कमल का खिलना - यह स्वप्न इस बात का प्रतीक था कि चारों वर्णों में मुख्य रूप से वैश्यों के द्वारा ही धर्माचरण किया जाएगा।
8. खद्योत द्वारा बहुत अधिक प्रकाश फैलाना - जिसका अर्थ था त्यागी साधु संत भी अहिंसा धर्म को छोड़कर आडम्बर को प्रोत्साहन देंगे तथा बाह्य क्रियाकाण्डों से ही सम्मान प्राप्त करेंगे ।
9. पूर्व आदि तीन दिशाओं में सूखा हुआ समुद्र जिसका अर्थ था कि तीर्थंकरों की कल्याणक क्षेत्रों में प्रायः धर्म की हानि होगी। केवल दक्षिण दिशा के क्षेत्र में ही नाम मात्र का धर्म रहेगा।
10. स्वर्ण पात्र में खीर खाता हुआ कुत्ता - इस स्वप्न का तात्पर्य था कि उत्तम पुरुष श्री विहीन होंगे और पापी व्यक्ति आनंद मनाएंगे।
11. हाथी के पीठ पर बैठा हुआ बंदर, इस स्वप्न का तात्पर्य हुआ कि लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों पक्षों में अधार्मिक एवं आचरणहीन व्यक्तियों को सम्मान एवं उच्च पद मिलेगा ।
12. समुद्र का मर्यादा तोड़कर भागना, जिसका तात्पर्य था कि उत्तम व्यक्ति भी पेट पालने के लिए मर्यादाहीन हो जाएंगे।
13. एक विशाल रथ में जुते हुए छोटे-छोटे बछड़े, जिसका फल था कि भविष्य में छोटी उम्र के बच्चे संयम ग्रहण करेंगे अर्थात् संयम रथ की धुरा को धारण करेंगे।
14. महामूल्य रत्न को निस्तेज देखना, जिसका तात्पर्य था कि भविष्य में साधुओं के परस्पर कलह, अविनय आदि के कारण चारित्र का तेज घट जाएगा।
15. बैल की पीठ पर बैठा हुआ कुलीन राजकुमार – जिस स्वप्न का फल था क्षत्रिय आदि विशिष्ट वर्ग जिन - धर्म को छोड़कर मिथ्यात्व के पीछे लगेंगे और दुर्जनों का विश्वास करेंगे।
16. दो कृष्णवर्णी हाथियों को युद्ध करते हुए देखना, जिसका फल था कि पिता और पुत्र तथा गुरु और शिष्य परस्पर विग्रह करेंगे तथा कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि होगी ।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
39
www.jainelibrary.org