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अवस्था में देखना, यह दृष्टार्थ विसंवादी स्वप्न है। स्वप्न के अनुसार उसका फल मिलना फलाविसंवादी स्वप्न है। जैसे स्वप्न में कोई स्वयं को हाथी या घोड़े पर आरूढ़ देखे, कालान्तर में उसे धन सम्पत्ति का लाभ होना।
2. प्रतान :- विस्तारयुक्त स्वप्न देखना प्रतान स्वप्न दर्शन है। यह यथार्थ और अयथार्थ दोनों प्रकार का हो सकता है।
3. चिन्ता :- जागृत अवस्था में जिस व्यक्ति या वस्तु को देखा, स्वप्न में उसी व्यक्ति या वस्तु को देखना चिन्ता स्वप्न दर्शन है।
4. तद्विपरीत :- स्वप्न में जो वस्तु, व्यक्ति या दृश्य देखा, जागने पर उसके विपरीत वस्तु, व्यक्ति या दृश्य की प्राप्ति होना तद्विपरीत स्वप्न दर्शन है।
__ अव्यक्त :- स्वप्न में देखी वस्तु का स्पष्ट रूप से ज्ञान न होना अव्यक्त स्वप्न दर्शन है। निशीथ भाष्य में भी इन पांच प्रकार के स्वप्नों का उल्लेख मिलता है। विशेषावश्यक भाष्य में स्वप्न के 9 प्रकार बताए गए हैं
1. अनुभूत - स्नान, भोजन, विलेपन आदि अनुभूत वस्तुओं का स्वप्न में दीखना। 2. दृष्ट - हाथी, घोड़े, ऊंट, बैल आदि पूर्व में दृष्ट वस्तुओं का स्वप्न में दीखना। 3. श्रुत - भूत, पिशाच, स्वर्ग, नरक आदि सुनी हुई चीजों का स्वप्न में दीखना। 4. प्रकृतिविकार - वात, पित्त आदि की न्यूनाधिकता से उत्पन्न विकार के
कारण स्वप्न दीखना। उदाहरणार्थ वात प्रकृति वाला पर्वत पर चढ़ना या आकाश में उड़ने का स्वप्न देखता है। पित्त दोष से व्यक्ति अग्निप्रवेश तथा
कफदोष से नदी स्नान आदि स्वप्न दिखाई देते हैं। 5. चिन्ता - मन-चिन्तित वस्तु का स्वप्न में दीखना। 6. देवता - किसी देव विशेष के अनुकूल या प्रतिकूल होने पर दीखने वाला
स्वप्न। 7. अणूका - प्रादेशिक सजलता के कारण आने वाला स्वप्न। 8. पुण्य - धर्मक्रिया के प्रभाव से आने वाला शुभ स्वप्न। 9. पाप - पाप के उदय से दिखाई देने वाला स्वप्न।'
तिलोयपण्णत्ति में फल के आधार पर स्वप्न के दो भेद किए हैं- 1. चिह्न स्वप्न, 2. माला स्वप्न। हाथी सिंह आदि का दर्शन चिह्न स्वप्न है, जो किसी शुभ एवं अशुभ के प्रतीक रूप हैं तथा पूर्वापर सम्बन्ध रखने वाला स्वप्न माला स्वप्न है।'
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
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