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की अवधारणाएं हैं, इसे सभी दार्शनिकों ने एक ही अर्थ में नहीं लिया, अपितु भिन्नभिन्न अर्थों में लिया है, अर्थात् सत् और असत् को वैदिक तथा उपनिषद् कालीन सभी दार्शनिकों ने एक ही अर्थ में प्रयुक्त नहीं किया, अपितु उन्होंने अपनी-अपनी समस्याओं के अनुसार विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त किया । किन्तु वे विभिन्न अर्थ क्या हैं, यह स्पष्ट नहीं है ?
स्पष्ट है कि ऊपर जो चर्चा की गई है उसमें जगत् के मूलतत्त्व सम्बन्धी सत् और असत् की अवधारणा एक अमूर्त कल्पना है, किन्तु कुछ अन्य दार्शनिकों ने जगत् के मूल तत्व को सत् रूप में अर्थात् भाव रूप में माना, किन्तु अमूर्त नहीं, मूर्तरूप में अर्थात् भौतिक या प्राकृतिक शक्तियों के रूप में । बृहदारण्क उपनिषद् में "जल" को जगत् का मूल तत्त्व मानकर उसी से समस्त विषयों की उत्पत्ति मानी है । ध्यान देने की बात यह है कि उपनिषदों में, एक ही उपनिषद् में दो विरोधी मत या मान्यताएं मिलती हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि वह उपनिषद् न तो किसी एक व्यक्ति द्वारा रचित है और न ही उसमें किसी एक मत या सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है, अपितु वह उपनिषद् अनेक दार्शनिकों के मतों या विचारों का संकलन है । अतः ऐसे उपनिषद् मिलने वाले दो विरोधी मतों में विरोध नहीं। जैसे बृहदारण्यक उप निषद में कहीं " असत्" को तत्त्व माना गया है, कहीं आत्मा को और कहीं जल को । बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार सृष्टि के आदि में केवल " जल की ही सत्ता थी । जल से सत्य की उत्पति हुई । सत्य से " "ब्रह्म २२ की उत्पत्ति हुई । ब्रह्म से "प्रजापति" की उत्पत्ति हुई और प्रजापति से देवताओं की सृष्टि हुई । किन्तु उपनिषदों के कुछ अन्य अवतरणों में जल की उत्पत्ति अग्नि से मानी गई है ।" इससे स्पष्ट होता है कि जल को जगत् का आदि कारण नहीं माना जा सकता है। यहां प्रश्न उठता है कि फिर जगत् का आदि कारण क्या है ? क्या जगत् का आदि कारण "अग्नि" है, क्योंकि जल की उत्पत्ति अग्नि से मानी गई है । यद्यपि किसी वेद अथवा उपनिषद् में स्पष्ट रूप से अग्नि को जगत् के मूल कारण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया, किन्तु कुछ अवतरण ऐसे हैं जिनके आधार पर, एक सीमा तक, अग्नि को जगत् के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । कठउपनिषद् में कहा गया है कि अग्नि ने विश्व में अन्तः प्रवेश करके विविध रूप धारण कर लिये । ऐसा ही एक अवतरण, जो कि छांदोग्य उपनिषद् में मिलता है, उसमें अग्नि को आदि सत् से उत्पन्न मूल तत्त्व माना गया है । छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार आदि सत् से प्रथम अग्नि की उत्पत्ति हुई और अग्नि से जल तथा जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। यहां सम्भवतः जगत् के समस्त विषयों की उत्पत्ति अग्नि से होने के कारण अग्नि को तत्त्व या कारण माना जा सकता है। किंतु उपनिषदीय दार्शनिक रैक्व ने अग्नि का निलय वायु में माना है, २७ जिससे सिद्ध होता है कि अग्नि जगत् का मूल कारण नहीं है । रैक्व ने सम्भवतः जगत् का मूल कारण "वायु" को माना है । यद्यपि उन्होंने निश्चित रूप से यह नहीं कहा कि वायु जगत् का मूल कारण या तत्त्व है, वरन् इस बात का संकेत किया कि "वायु" संपूर्ण जगत् का अन्त है। रैक्व" के अनुसार वायु समस्त पहार्थों का चरम आश्रय है
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और अंत में
खण्ड २२, अंक २
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