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३०. उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, पृ. ५५, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी,
जयपुर, प्रथमावृत्ति, १९८३ ३१. प्रश्न उपनिषद्, प्रश्न ६, मन्त्र ४ ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित, गीता प्रेस,
गोरखपुर, बारहवां संस्करण, सं. २०४७ ३२. तैत्तिरीय उपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली--प्रथम अनुवाक, ईशादि नौ उपनिषद् में
संकलित, गीता प्रेस, गोरखपुर, बारहवां संस्करण, सं. २०४७ ३३. उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, पृ. ५७, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ
अकादमी, जयपुर, प्रथमावृत्ति, १९८३ ।। ३४. वही, पृ. ५७ ३५. सूयगडो-१, १. १. १, ७, जैन विश्व भारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम
संस्करण, १९८४ ३६. सूत्रकृतांग सूत्र, सूत्रांक ६५५ व ६५६, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर,
राजस्थान, १९८२ ३७. प्रश्न उपनिषद्, प्रश्न २, मंत्र ३, ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित, गीता प्रेस,
गोरखपुर, बारहवां संस्करण, सं. २०४७ ३८. यहां "सब कुछ'' से तात्पर्य है आकाश, वायु, अग्नि, जल पृथ्वी, वाणी, श्रोत
तथा मन । आकाश आदि पांच महाभूतों को “सब कुछ' में इसिलए गिनाया गया है कि उन्हें प्राण के ही पांच रूप या भाग माने हैं तथा प्राण से ही उनकी
उत्पत्ति । प्रश्न उपनिषद् २. ३, २. ५ व ६. ४ ३९. वही, प्रश्न २,४ मंत्र ४०. वही, प्रश्न २, मंत्र ५ व ६ ४१. वहीं, प्रश्न २, मंत्र ५ ४२. उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर
प्रथमावृत्ति, १९८३. ४३. वही, पृ. ६५ ४४. बृहदारण्यक उपनिषद्, १. ४. ३, १. ४. ४, १. ४. ७, सूयगडो-१ में उद्धत,
पृ. ६२, जैन विश्व भारती लाडनूं, राजस्थान, प्रथम संस्करण, १९८४.. ४५. उपनिषद्-दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, पृ. ६७, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी,
जयपुर १९८३ ४६. तैत्तिरीय उपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली-प्रथम अनुवाक, ईशादि नौ उपनिषद् में
संकलित, गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ । । ४७. तैत्तिरीय उपनिषद् में अन्न को सब भूतों से श्रेष्ठ बतलाकर उसी से प्राणियों की
उत्पत्ति मानी है तथा उसी में उनका निलय । ४८. ऐतरेय उपनिषद्, अध्याय, १ खंड १, ईशादि नो उपनिषद् में संकलित, नीता
प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ । ४९. ऐतरेय उपनिषद् में आत्मा से जिन लोकों की उत्पत्ति मानी हैं वे हैं-अम्भ
लोक, अन्तरिक्ष लोक, मर्त्य लोक और जल लोक । खण्ड २२, अंक २
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