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७८. ई की मां तो इनै ही जायो।
७९. उघाडै बारणे धाड नहीं उजाड गांव में राड नहीं । ८०. उणी गांव में पीर उणी में सासरो आथण की दिसी खेत चुवै नह आसरो
नाडी खेत नजीक उठे हल खोलणा एता दे करतार फैर नहीं बोलणा । ८१. उल्टो चोर कोतवाल नै डंडे । ८२. उखली में सिर दे जिको धमका सै के डरै । ८३. उधे ही अर बिछायो लाध्यो।
८४. ऊंट के मुं में जीरै सें के हवै। ८५. ऊंट चढ्या ने कुत्तो खाय । ८६. ऊत गये की चिट्ठी आई बाचं जीने राम दुहाई। ८७. ऊपर बागा घर में नागा ।
८८. एक आंख को के मीच के खोल। ८९. एक घर तो डाकण ही टालो है । ९०. एक नन्नो सो दुःख हरै । ९१. एक पैंडे चाली कोन्या रे बाबा तिसाई । ९२. एक बांदरी के रुस्यां के अयोध्या खाली हो ज्यासी । ९३. एक हाथ से ताली कोनी बाजै ।
९४. ऐरण की चोरी करी करयो सूई को दान ऊपर चढ़ कर देखण लागौ कद
आवै बिमाण । ९५. ऐसा को तेसा मिल्या बामण को नाई वो दिनी आसका वो आरसी दिखाई।
ओ ९६. ओई पूत पटेला मे ओई गोबर भारा में । ९७. आक्यां को टाबर ? खाय बराबर । ९८. ओछा की प्रीत कटारी को मरण । ९९. ओछी पूंजी धणी ने खाय । १००. ओछी पोटी में मोटी बात कोनी खटावै।। १०१. ओछे की प्रीत बैलू की सी भींत । १०२. ओछो बोरो, गोद को छोरो, विना मुरै की सांड, नाते की रांड कदेई न्हाल
कोनी करै। १०३. ओसां से घडियो कोनी भरै। १०४. ओही काल को पडवो ओही बाप को मरवो।
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तुलसी प्रज्ञा
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