Book Title: Tulsi Prajna 1996 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 138
________________ ५२ २४५ ३३. व्यवहारः दशसूद्दे शेष-३५-३०-२९--३२-२१--- १२-२७-१६-४६-३७ २४३ ३४. दशाश्रुत स्कंधच्छेदसूत्रं ३५. कल्पसूत्र वारसा २६ ३६ . जीत कल्पभाष्यं मू० १०३ व्याख्या २७११ ३७. पंचकल्प भाष्यं २६६५ २६६ ३८. महानिशीथच्छेदमूत्रं अ० ७--३२.२१७-~२०८ २७९ ४२-१०.१३६-० २८-२ १२८--४१६ २२-८ १०३-३० ३९. आवश्यकंसनियुक्तिकं सू० ५४ नि. १७१९ भा. २५७ सूत्रगाथा-२१ । २९४ मूलसूत्रं ४०. ओघनियुक्तिः भा. ३२२ ३०५ ४१. दशवकालिक ५१५ ४२. पिंडनियुक्तिः भा. ३७ ३१४ ४३. उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं ३१८ ४४. नन्दी सूत्रं ९० ३२५ ४५. अनुयोगद्वार सूत्रं १२५ १५२ ३२७ इस प्रकार यह मूलपाठ कुल ३२७ शिलाओं पर उत्कारित है जिसे कुल १३३६ पत्रकों में सुनहरी स्याही से मुद्रित भी करा दिया गया है। --परमेश्वर सोलंकी नि. ८१२ mr ०. नि. ६७१ mr खंड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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