Book Title: Tulsi Prajna 1996 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 203
________________ 104 TULSI PRAJŅĀ लेख शोधपरक एवं सूचनापरक हैं। नवीनतम अंक में जैनदर्शन के साथ कालक्रम और इतिहास विषयक लेख देकर आपने 'तुलसी प्रज्ञा' के पाठकों के दायरे को बढ़ा दिया है । 'तुलसी प्रज्ञा' में जैन स्रोतों पर भी अधिक से अधिक सामग्री दें तो भारतीय इतिहास का अनेक स्थानों पर अवरूद्ध हुआ इतिहास क्रम सामान्य बन सकेगा । ' ५. वरदा, विसाऊ और विश्वंभरा, बीकानेर के संपादक डॉ० मनोहर शर्मा लिखते हैं 'तुलसी प्रज्ञा' का नया अंक (९७) प्राप्त हुआ । इसमें अति महत्त्वपूर्ण सामग्री दी गई है । प्रकाशन श्लाघ्य है । एतदर्थ हार्दिक बधाई ।' ६. १३६, सहेली नगर, उदयपुर से अवकाश प्राप्त प्रोफेसर प्रतापसिंह लिखते हैं— "आपके अतिरिक्त किसी ने भी १५ संधियों की मेरी शंकाओं के समाधान में कोई सहानुभूति व सहयोग नहीं दिखाया । सबने उपेक्षा या पलायनवाद का सहारा ले चुप्पी साध ली है । आपके इस सहयोग के लिए धन्यवाद ।' ७. पांचाल शोध संस्थान', कानपुर से श्री हजारीमल बांठिया लिखते हैं" तुलसी प्रज्ञा " -- पूर्णांक ९७ मिला । सदैव की भांति अनुसंधान - सामग्री से ओत प्रोत है ।" - प्राप्त पत्रों से " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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