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अधिकारी विद्वानों द्वारा चिन्तन-मनन किया जाना चाहिए । इस संगोष्ठी में भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के निदेशक डॉ० सुधांशु कुमार जैन ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में किसी पश्चिमी लेखक को उद्धृत करते हुए कहा कि वनस्पति की एक जाति का नष्ट होना नरसंहार से कम नहीं है । यद्यपि पश्चिमी नजरिये से देखना गलत है किन्तु इस उक्ति में जो आंशिक सत्य है उसे उजागर करने की चेष्टा नहीं हुई । झांसी संगोष्ठी में ही जैन धर्म और वनस्पति विज्ञान - शीर्षक लेख भी पढ़ा गया और डॉ० सुधांशु का नोट कि दुर्लभ वनस्पति संरक्षण होना चाहिए किन्तु क्या इसी एक विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन कर उसमें से नवनीत निकालना ठीक नहीं होगा ? सोचने का प्रश्न है ?
- परमेश्वर सोलंकी
४. जैन दर्शन : वैज्ञानिक दृष्टियो (गुजराती - हिन्दी-अंग्रेजी लेख संग्रह ) - मुनिश्री नन्दीघोषविजयजी ; प्रकाशक- -श्री महावीर जैन विद्यालय, अगस्त क्रान्ति मार्ग, मुम्बई - ४०००३६; मूल्य १०० /- रु० ।
माला का
श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई - ३६ बहुत पुरानी प्रकाशन संस्था है । इस संस्था से जैन आगम ग्रन्थमाला के अलावा गुजराती में श्री मोतीचंद कापड़िया ग्रन्थप्रकाशन हुआ है और डॉ० वी. एम. कुलकर्णी, डॉ० मोतीचन्द्र एवं डॉ० यू. पी. शाह के ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। श्री वीरचंद राघवजी गांधी की पुस्तक — दी सिस्टमस् ऑफ इण्डियन फिलोसोफी' भी यहीं से प्रकाशित हुई है । संप्रति संस्था के पदाधिकारियों ने गुजाराती जर्नल 'नवनीत समर्पण' में प्रकाशित मुनिश्री नंदी घोषविजयजी के कतिपय लेखों का संग्रह गुजराती - हिन्दी-अंग्रेजी में 'जैनिज्म थ साइंस' प्रकाशित किया है ।
मुनिश्री नंदीघोषविजय, आचार्यश्री विजयसूर्योदयसूरिजी के शिष्य हैं । उनका दीक्षा पूर्व का नाम निर्मलकुमार नगीनदास शाह है और वे विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं । प्रस्तुत लेख संग्रह, यद्यपि प्राथमिक है किन्तु उसमें पाठक को आकर्षित करने तथा जैन सिद्धान्तों को आधुनिक ( वैज्ञानिक) परिप्रेक्ष्य में देखने का उत्साह होता है । यह बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि जैन सिद्धान्तों में अन्तर्निहित विज्ञान को उजागर करने से अन्यत्र बहुत ही सुखद और आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं ।
पुस्तक का प्रकाशन, गेट-अप और साज-सज्जा अच्छी है । मूल्य भी अधिक नहीं है इसलिए जिज्ञासु और प्रबुद्ध दोनों प्रकार के पाठक इस ओर आकर्षित होंगे।
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५. ग्लोसरी ऑफ जैन टर्मस् ( Glossary of Jaina Terms) - डॉ० नंदलाल जैन ( रींवा ), प्रकाशक- जैन इन्टरनेशनल, २१, सौम्य, अहमदाबाद- ३८००१४, प्रथम संस्करण --- १९९५, मूल्य - ४० /- रुपये |
'जैन इन्टरनेशनल' ने सन् १९९३ में श्री वीरचंद राघवजी गांधी की अमर कृति के रूप में 'धर्म और जैन दर्शन' का प्रकाशन किया था जो द्वितीय विश्व धर्म संसद्
खण्ड २२, अंक २
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