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रोडेराव की 'राउरवेल' का मूलपाठ*
परमेश्वर सोलंकी
कवि जयराम अपरनाम रोड़ेराव ने गाथाओं में "धम्मपरिक्खा" लिखी थी। कवि हरिषेण ने उसे पद्धड़िया छन्द में लिखा और राजा भोज के सभारत्न, कवि अमितगति ने उसी को "धर्म-परीक्षा" के रूप में संस्कृत में लिखा । इस प्रकार 'राउरवेल' विक्रमी ग्यारहवीं सदी पूर्वार्द्ध की रचना है।'
उक्त शिलालेख पर अनेकों विद्वानों ने कलम चलाई हैं। प्रमुख हैं विषय के मर्मज्ञ विद्वान् डॉ० हरिवल्लभ भायाणी और हिन्दी साहित्य जगत् के जाने माने डॉ० माताप्रसाद गुप्त । डॉ० भायाणी ने इसे 'भारतीय विद्या'–भाग १७ अंक ३-४ में 'प्रिंस ऑव वेल्स म्यूजियम स्टोन इन्सक्रिप्सन फ्रोम धार' नाम के प्रकाशित किया और बाद में "राउरवेल ऑव रोडा"--शीर्षक से भी उन्होंने इस पर लिखा है । डॉ० गुप्त ने इस संबंध में "हिन्दी अनुशीलन-धीरेन्द्र वर्मा अंक" में लिखा और फिर उसे 'राउरवेल और उसकी भाषा' ---शीर्षक से छपवाया।
दोनों विद्वानों के ऊहापोह पर अलग से चर्चा की जाएगी। १. हरिषेण की 'धम्म परिक्खा' वि० सं० १०४४ में और अमितगति की 'धर्मपरीक्षा, वि.सं. १०७० में लिखी गई है । हरिषेण ने अपना वंश-परिचय दिया है। वह मेवाड़ में चित्तौड़ का निवासी है और उजौर से उठे हुए धक्कड़वंशी श्रीहरि उसके पितामह और गोवर्धन उसके पिता हैं। 'धम्म परिक्खा' के ही अन्तर साक्ष्य से दूसरे दंश के राजराणा रोड़ेराउ अपरनाम कवि जयराम ने 'धम्म परिक्खा' गाथाओं में लिखी थी जिसका पद्धडिया छन्द में रूपान्तरण हरिषेण ने किया और उसके दो पात्र-मनोवेग और पवनवेग के रूप में अपना और अपने मित्र (रोड़ेराव के पुत्र) का स्पष्टीकरण भी उसने संधि-२ के चौथे और छठे • छंद में कर दिया -
समत्थत्थवेईण भट्ठाण ढाणे । करे हरिसंण वं हणियाणे ॥४॥
x तउ भासियं तेहिं रोडेहं पुत्तं । ण जुत्तं पि रंजेवि अट्ठाणचित्तं ।।६।। -देखें, तुलसीप्रज्ञा, लाडन, भाग १९ अंक ३ पृ० २५७-२५८
पर प्रकाशित पुस्तक-समीक्षा । खण्ड २२, अंक २
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