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१७. एहां तेहां सउ आघूघाड़े थ
जणु
मोह / इ ॥ '
कस्
नस्यू ॥
दीसह ।
वीस हि ॥
जो
सो सन्नाहि अणंगही विएय्यfण जे थण ते निहालि सव वधु गोरइ अंगि विरंगा संझहि जोन्हहि न सगउ पहिरण घाघरेहि जो
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कंय्या ।"
ह्यां ॥
केरा । *
तेरा ॥
पहिरणु ।
जणु ॥
१८. कछ / ड़ा बछड़ा ढहिं परइ
( सुथनी) मांझी कंइला पाखइ पाखउ धावइ तसु एहा वेह सुहावा आन्नउ सदाउहि परइ एही टक्किणि पइसति
टेल्ल ।
गेल्ल ||
सोहर |
१९. सो निहाल जण मलम / ल चाहइ ॥॥॥॥
कीस वंडीरा टाक (तु हु बोलसि) । गउड़िहु आगे वान तु भूलसि ।। तइकी कत वेसरे दीठे | जेहर तेहर वानसि वे वे ॥ गोड सु आणु सतइ कत दीठे । ते देखि वेसकि भावथि मीठे ॥
घर का मुखिया ।
२०. ते / देहु बाधेंहि केस ज लढहिम्व | खोप वलीए कहुरे
सम्व ॥
१. एहांतेहां - देखिए कुवल० -' 'एहं तेहं चवंते ढक्के,
उण पेच्छए कुमरो ||२२|| '
२. टक्क देश जो आधुनिक राजस्थान का ही भूभाग था, उसमें ग्रामीण औरतें ऐसी कांचली पहनती हैं जो स्तनों को आधा ही ढ़कती हैं।
३. कंय्या कैसे और कांइ - क्या - शब्द बीकानेर, जोधपुर और जयपुर डिविजनों में प्रयुक्त होते हैं ।
४. घाघरा राजस्थानी पहराण है किन्तु पुरानी बहावलपुर रियासत से लगे क्षेत्र में आज भी भारी घाघरा पहना जाता है जिससे औरत को घूम-झूमकर चलना होता है ।
५. वंडीरा =
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तुलसी प्रज्ञा
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