________________
५०. आत्मषष्ठवादी दार्शनिक । इन दार्शनिकों ने पांच महाभूत और और आत्मा को
तत्त्व माना है । अत: इनका मत "अत्मषष्ठवाद' विख्यात है। ५१. सूयगडो-१, १. १. १. १५, जैन विश्व भारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम
संस्करण १९८४ ५२. वही, १.१.१.१५ एवं १६
सूत्रकृतांग सूत्र, सूत्रांक १५, १६ एवं ६५७, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर
राज. १९८२ ५३. मुण्डक उपनिषद्, मुण्डक २, खण्ड १, मंत्र २, ७ व ९ ईशादि नौ उपनिषद् में
संकलित, गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ ५४. वही, मुण्डक २, खंड १, मंत्र २ ५४. वही, मुण्डक २. खंड १, मंत्र ३, ५, ७, व ९ ५६. प्रश्न उपनिषद् प्रश्न १, मंत्र ४, ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित, गीता प्रेस,
गोरखपुर, स. २०४७ ५७. मूतं और अमूर्त जड़ पदार्थों को "रयि" कहा गया है। ५८. "जीवन शक्ति" को 'प्राण" कहा गया है, जो चेतन है। ५९. श्वेताम्वतर उपनिषद्, अध्ययाय १, मंत्र ९ एवं १२, ईशादि नौ उपनिषद् में
संकलित, गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ ६०. मुण्डक उपनिषद् के द्वितीय मुण्डक के प्रथम खंड में "दिव्य अमूर्त पुरुष" को
परम तत्व माना है जबकि प्रथम मुण्डक के प्रथम खंड में "ब्रह्म" को परम तत्त्व
माना है। ६१. मुण्डक उपनिषद्, मुण्डक १, खंड १, मंत्र ८, ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित,
गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ ६२. माण्डूक्य उपनिषद्, मंत्र १ व २, ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित, गीता प्रेस,
गोरखपुर, सं. २०४७ ६३. सूयगडो, १. १. १. ९, जैन विश्व भारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम संस्करण
१९८४ "विष्णु" के अर्थ को लेकर विचारकों में मत भेद है, किन्तु सूत्रकृतांग की हिन्दी व्याख्या में इसे "ब्रह्म" के अर्थ में लिया गया है। देखें--सूत्रकृतांग, पृ. २४,
श्री आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, राजस्थान, १९८२ ६५. अकारणवादी दार्शनिक । ६६, दीर्घनिकाय-"ब्रह्मजालसुत्त"
(श्री राजवीर सिंह शेखावत)
१२, प्रताप नगर शास्त्री नगर, जयपुर-१६
६४.
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org