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(घ) मुजाओं का अलंकरण-बलम मणि वलया तथा मृणाल वलय आदि प्रमुख हैं (ड) कटि प्रदेश के भलंकरण में कांचीलता" मुखर मेखला प्रमुख है। (च) पैरों के अलंकरण - में नूपुर५, मणिनपुर तथा मरवत मंजोर" प्रमुख हैं। (छ) प्रसाधन के उपकरण में शीत कालीन प्रसाधन मदन विलोपन", सुगन्धित
तेल, काजल एवं चरण कुंकुम है तथा ग्रीष्म-कालीन प्रसाधना में चन्दनलेप, गले में मोतियों की माला मृणालततुंओं के कंगन तथा केशविन्यास आदि का
वर्णन प्राप्त होता है। (ज) कलाकृतियां :-कर्पूरमंजरी में पद्मपरागीण से निर्मित गौरी की प्रतिमा तथा
वटवृक्ष के नीचे चामुण्डा की मूर्ति का भी उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त केलिविमान प्रासाद सुन्दर कला कृतियां एवं शिल्पकला के उत्कृष्ट उदा
हरण हैं। (क) प्रमुख सांस्कृतिक प्रवृत्तियां :-कर्पूरमंजरी के अध्ययन से ज्ञात होता है कि
तत्कालीन भारत में जहां एक ओर राष्ट्रीय संस्कृति की प्रमुख धारा प्रवाहित हो रही थी, वहीं दूसरी ओर भारत के विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृति की वेगवती धाराओं की कल-कल ध्वनि भी निनादित हो रही थी। विलास एवं शृंगार की प्रवृत्ति भी उस समय के कला-कृतियों, साहित्यिक रचनाओं, धार्मिक साधनाओं और राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्था में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं।
आचार्य राजशेखर की कर्पूरमंजरी, सांस्कृतिक निर्माण की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उनमें प्राप्त होने वाली सूचनाएं तत्कालीन भारत से सांस्कृतिक जीवन का एक सुस्पष्ट चित्र प्रस्तुत करती है।
(२) ऐतिहासिक महत्त्व : ... कर्पूरमंजरी में ऐतिहासिक महत्त्व के तथ्य भी पाये जाते हैं । भारत वर्ष के धार्मिक इतिहास के अध्ययन में कर्पूरमंजरी से कुछ सहायता मिलती है । कर्पूरमंजी में तंत्र सम्प्रदाय की शिक्षाओं का उल्लेख है। चतुर्थ जवनिका में महारानी विभ्रमलेखा भैरवानन्द को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाती है। भैरवानन्द सट्टक के प्रथम जवनिका में रंग मंच पर सुरा पिये हुए उपस्थित होता है और ऐसी बातें कहता है जो प्रत्यक्ष रूप से असत्य और अनैतिक मालूम पड़ती हैं। भैरवानन्द कहता है कि "न कोई मंत्र जानता हूं न कोई तंत्र ही जानता हूं और न कोई शास्त्र जानता हूं, गुरु के मत के अनुसार कोई ध्यान अथवा समाधि लगाना भी नहीं जानता हूं। शराब पीते हैं, दूसरों की स्त्रियों के साथ सहवास करते हैं और मोक्ष पाते हैं और यही हमारे कुल परम्परा का व्यबहार है"। और भी "विधवा या चडाल और तांत्रिक शिक्षा में दीक्षित स्त्रियां ही हम लोगों की धर्म पत्नियां हैं। मदिरा पीता हूं और मांस भक्षण करता हूं तथा भिक्षा ही हमारा भोजन है तथा पशुचर्म ही हमारी शय्या है।"
भैरवानन्द आगे कहता है कि "विष्णु, ब्रह्म आदि प्रमुख देवताओं ने ध्यान के द्वारा, वेद पढ़ने से, यज्ञ आदि की क्रियाओं के करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा हैं । लेकिन केवल उमा के प्रति भगवान शंकर ने मोक्ष की प्राप्ति संभोग और
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