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कविराज राजशेखर रचित कर्पूरमंजरी
0 रामदीप राय
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति तथा ऐतिहासिक मूल्यों को सुरक्षित रखने में वाङ्मय ने अहं भूमिका का निर्वाह किया है। इसी परिप्रेक्ष्य में नाटक और सट्टक साहित्य का भी विशेष महत्त्व है। इसीलिए आज भी प्राचीन नाटकों का मंचन, विशेष आकर्षण का द्योतक माना जाता है। इसका कारण भी स्पष्ट है । हमारे प्राचीन संस्कृत-प्राकृत नाटकों या सट्टकों की कथावस्तु में मनोरम कल्पनाओं की जो वनावट है वह चिर नवीन और अदभुत होने के साथ ही लोक संस्कृति, सहज सामाजिक परिवेश एवं विविध रंगों से युक्त सांस्कृतिक उपादानों से आपूरित है।
भारतीय संस्कृति के निर्माण, संवर्धन और संरक्षण का भागीरथ प्रयास मन्त्र द्रष्टा ऋषियों से लेकर वाल्मीकि और व्यास, पाणिनि और पत जलि, भास और कालिदास. भर्तृहरि और भवभूति, भारवि और भट्टि, श्रीहर्ष, वाणभट्ट और राजशेखर तथा इन्हीं जैसे अनेक कवि-मनिषियों की अमर कृतियों में दृष्टिगोचर होता है । आचार्य राजशेखर ने अपने कर्पूरमंजरी नामक सट्टक में भी विविध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तत्त्वों पर प्रकाश डाला है । इस सट्टक से तत्कालीन सामाजिक रीतिरिवाज धर्म वेशभूषा एवं अलंकरण, शिक्षा, ललित कला, चित्र कला, संगीत कला, आर्थिक परिस्थितियां, राजनैतिक परिस्थितियां एवं भाषा साहित्य का पर्याप्त ज्ञान होता है। (१) सांस्कृतिक महत्त्व : - आचार्य राजशेखर के कर्पूरमजरी सट्टक में संस्कृति का अर्थ
अत्यन्त व्यापक है। उन्होंने जीवन भोग को भी संस्कृति का अंग माना है। उत्सव क्रीड़ाएं, प्रेम व्यापार एवं पारस्परिक आदान-प्रदान की क्रियाए संस्कृति के उपांग
(क) सामाजिक परिस्थितियां :-उस समय समाज में प्रचलित रीति-रिवाज के
अन्तर्गत अन्तर्जातीय विवाह और बहुविवाह करने की छूट थी ।' वर-वधू को विवाह के निमित्त बनाए गए एक विशेष मंडल में लाया जाता था तथा वस्त्र पहनाकर सभी प्रकार के आभूषणों से सजाया जाता था। इस अवसर पर वर और वधू दोनों ही पक्षों के सम्बन्धी उपस्थित रहते थे तथा उन के
समक्ष विवाह क्रिया सम्पन्न होती थी। (ख) आर्थिक परिस्थितियां :-प्रस्तुत सट्टक में वणित सामग्री के आधार पर यह
कहा जा सकता है कि वह युग सुख समृद्धि से परिपूर्ण था। रनों तथा सोने,
खण्ड २२, अंक २
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