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चांदी की बने हुए विविध अलंकरणों का ज्ञान होना इस बात का द्योतक है। कि वह युग वैभव सम्पन्न था ।
(ग) राजनैतिक परिस्थितियां :-- विलास और श्रृंगार की प्रवृत्ति की स्पष्ट छाप तत्कालीन राजनीति पर भी परिलक्षित होती है । राजनीति के इन गुणों का प्रयोग, किसी कन्या को किसी दूसरे राज्य से छलपूर्वक मंगवाकर अपने स्वामी को चक्रवर्ती पद पर प्रतिष्ठित करने के निमित्त उससे उनका विवाह कराने में भी किया जाने लगा था। कर्पूरमंजरी में भी कुछ इसी तरह की घटना घटी हुई दिखाई देती है । अतः तत्कालीन राजनीति के क्षेत्र में वीरता और पराक्रम के ऊपर विलास और श्रृंगार की मनोवृत्ति का हावी होना स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । (घ) धार्मिक परिस्थितियां :--: - राजशेखर के ग्रंथों के कि उस समय धार्मिक कट्टरता नहीं थी । एक अपनी-अपनी रुचि तथा विश्वास के साथ विष्णु, कर सकते थे । शक्ति के कोल सम्प्रदाय का कम प्रचार नहीं था । राजशेखर ने जिस नग्न वह तत्कालीन समाज में व्याप्त निम्न धार्मिक स्तर का सूचक है ।" (ङ) शिक्षा :- उस समय समाज में शिक्षा का विशेष प्रचार था । पुरुषों की भांति महिलाएं भी सुशिक्षित होती थीं । धार्मिक, आध्यात्मिक, लौकिक सभी प्रकार के विषयों की शिक्षा दी जाती थी । उत्सव एवं मनोविनोद : कर्पूरमंजरी वसन्तऋतु के मनोरम सौन्दर्य से हुआ । को देखाकर जनमानस मुग्ध हो जाता है ध्वनि झंकृत होने लगती है ।
अवलोकन से ज्ञात होता है परिवार के विभिन्न सदस्य शिव या शक्ति की उपासना भी मध्यकालीन समाज में कौल धर्म का संकेत किया है
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सट्टक का प्रारम्भ वसन्तोत्सव अथवा ऋतुराज वसन्त के प्राकृतिक सौन्दर्य और चारों ओर संगीत की मधुर
कर्पूरमंजरी में वटसावित्री महोत्सव का वर्णन बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया है ।" हिन्दोलन चतुर्थी अवसर पर झूलने का वर्णन पाया जाता है । (छ) वेशभूषा, अलंकार तथा प्रसाधन :- - (१) वेशभूषा कर्पूरमंजरी में वस्त्राभूषण एवं अलंकार सामग्री के उल्लेख मिलते हैं । माथे के वस्त्र " प्रतिशोषक, मध्यभाग के वस्त्र कूपासक, वंचुलिका, पट शाटिका और चलिताशुक' आदि कई वस्त्रों का उल्लेख कर्पूरमंजरी में पाया जाता है। (२) अलंकार सामग्री :- अलंकरण प्रसाधनों में मुख्यतः दो प्रकार थे । पहला प्राकृतिक उपादानों से निर्मित और दूसरा रत्नों तथा गोने-चांदी से । (क) माथे में अलंकार शेखर' जो आज भी मांगटीका के नाम से जाना जाता है । (ख) गले का अलंकरण में एकावली" यह बड़े-बड़े तथा घने मुक्ताफलों की गूंथकर बनाई गई एक तरह की माला होती थी । मुक्ताहार" गौरिकहार तथा मरकत मणि का वर्णन आया है ।
(ग) कान के अलंकरण में ताटक", कुण्डल, कर्णाभरण तथा कर्णपाश प्रमुख हैं ।
तुलसी प्रजा
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