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१२. ऋग्वेद, मण्डल १, सूक्त १६४, ऋचा ४६, दयानन्द संस्थान, नई दिल्ली, द्वितीय
संस्करण, संवत २०३२ १३. वही, मण्डल १, सूक्त १६४, ऋचा ४६ १४. छान्दोग्य उपनिषद्, ६. २. १. २, उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण में
उद्धत, पृ० ४१ राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर प्रथमावृत्ति, १९८३ । १५. वही, ६. २. ३. ४. व ६. ३. २. ३, सूयगडो-१ में उद्धृत, पृ० ६२, जैन
विश्व भारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम संस्करण, १९८४. १६. जैन अनेकांतवाद एवं अपेक्षा सिद्धांत से तुलना करें। १७. मुण्डक उपनिषद् (गीता प्रेस, गोरखपुर) के मं २. २. १ की हिन्दी व्याख्या में
सत् और असत् को कार्यकरण के अर्थ में लिया गया है। किन्तु यहां प्रश्न है
कि सत् और असत् को कार्य और कारण के अर्थ में लेना क्या तर्कसंगत होगा? १८. मुण्डक उपनिषद्, द्वितीय मुण्डक, द्वितीय खंड, मन्त्र १, ईशादि नौ उपनिषद् में
संकलित गीता प्रेस गोरखपुर, बारहवां संस्करण, सं. २०४७ १९. ऋग्वेद, मण्डल १०, सूक्त १२९, ऋचा १ व २, दयानन्द संस्थान, नई दिल्ली,
संवत् २०३२ २०. बृहदारण्यक उपनिषद्, ५. ५. १, उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, पृ. ५४
में उद्धृत, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर १९८३ २१. बृहदारण्यक उपनिषद् का यह मत ग्रीक दार्शनिक थेलीज़ के उस मत से साम्य
रखता है जिसके अनुसार जल समस्त वस्तु जगत् का मूल कारण है। २२. बृहदारण्यक उपनिषद् में "ब्रह्म' को सत्य से उत्पन्न माना गया है जबकि
परवर्ती युग में ब्रह्म को मूल तत्त्व माना गया है । अतः यहां प्रश्न उठता है कि बृहदारण्यक उपनिषद् में वर्णित "ब्रह्म" और परवर्ती युग में प्रचलित "ब्रह्म'
ये दोनों एक है या भिन्न ? २३. (क) छांदोग्य उपनिषद, ६. ३. ३. ४, ६. ३. २. ३, सूयगडो --१ में उद्धृत,
पृ. ६२, जैन विश्व भारती, लाडनूं, राजस्थान, प्रथम संस्करण, १९८४ (ख) प्रश्न उपनिषद्, प्रश्न६-मंत्र ४, तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली--प्रथम
अनुवाक, गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७ २४. कठ उपनिषद्, अध्याय २, बल्ली-२, मंत्र ९, ईशादि नौ उपनिषद् में संकलित
गीता प्रेस, गोरखपुर, सं. २०४७
ग्रीक भाषा में है राक्नाइटस ने "अग्नि" को जगत् का मूल कारण माना है। २५. उपनिषद् दर्शन का रचनात्मक सर्वेक्षण, पृ. ५२, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी,
जयपुर, प्रथमावृत्ति, १९८३. २६. वही, पृ. ५६ २७. वही, पृ. ५५ २८. रैवव के ये विचार राजा जानश्रुति को दिये गये उपदेशों में छिलते हैं। २९. ग्रीक दार्शनिक अनजी मैडर के अनुसार "वायु" समस्त विषयों का आदि और
अन्त है।
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तुलसी प्रज्ञा
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