Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
द्वितीय परिद जन्म-जन्मकी साधना
जीवनशोधन : सतत साधना
एक जन्मको साधनासे कोई तीर्थकर नहीं बन सकता । तीर्थकर बननेके लिये अनेक जन्मोंकी साधना अपेक्षित है । इस पदका पाना साधारण नहीं । इसके लिये आत्माका पूर्ण विकास-परमविशुद्धि आवश्यक है। जीव अनन्त कालसे संसारमें जन्म-मरणको परम्पराजन्य क्लेश-संततिको पा रहा है। शरीरमें प्रमत्व बुद्धि रखनेके कारण उसे संसारकी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करना पड़ता है। महावीरके जीवको भी अगणित काल राग-द्वेषके अधीन हो संसार-परिभ्रमणमें व्यतीत करना पड़ा। उन्हें अहिंसाका सर्वांगीण प्रासाद निर्माण करनेके लिये कई जन्मों तक साधना करनी पड़ी।
स्वस्थ विद्यारका अंकुर जीवनकी उर्वर भूमिमें तभी उत्पन्न हो सकता है, जब जीवनकी विकृतियाँ समाप्त हो जाती हैं और सत्य का आलोक दिखलायी पड़ने लगता है । तीर्थकर महावीरको शुद्ध, बुद्ध और प्रचेता बननेके लिये एक