Book Title: Tirthankar Charitra Part 1
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
विष या नु क्र म णि का
+
२०
क्रमांक विषय पृष्ठ | क्रमांक विषय
पृष्ठ भगवान् ऋषभदेवजी
२६ सुनन्दा का योग १ पूर्वभव-धन्य सार्थवाह
२७ विवाह २ बोधिलाभ
२८ भरत-बाहुबली और ब्राह्मी-सुन्दरी ३ युगलिक भव
का जन्म ४ देव और विद्याधर भव
२९ कर्म भूमि का प्रारंभ-राज्य स्थापना " ५ स्वयंबुद्ध का उपदेश
३० प्रभु को वैराग्य और देवों द्वारा । ६ अधर्मियों से विवाद
उद्वोधन ७ प्रव्रज्या ग्रहण और स्वर्ग गमन १५ ३१ वर्षीदान ८ देवी के वियोग में शोकमग्न
३२ दीक्षा ९ निर्नामिका का वृत्तांत ।
३३ साधुओं का पतन और तापस-परंपरा ५८ १. ललितांग देव का च्यवन
३४ विद्याधर राज्य की स्थापना ११ मनुष्य भव में पुनः मिलन
३५ भगवान् का पारणा १२ राज्य-लोभी पुत्र का दुष्कृत्य २३ | ३६ भगवान् को केवल ज्ञान १३ जीवानन्द वैद्य और उसके साथी " ३७ समवसरण की रचना १४ कुष्ठ रोगी महात्मा का उपचार
३८ भरतेश्वर को बधाइयाँ १५ भरतजी को चक्रवर्ती पद २६ | ३९ मरुदेवा की मुक्ति १६ अनेक लब्धियों के स्वामी
२७ । ४० भगवान
| ४० भगवान् का धर्मोपदेश १७ तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन २९| ४१ ज्ञान रत्न १८ कुलकरों की उत्पति-सागरचंद्र का | ४२ दर्शन रत्न साहस
| ४३ चारित्र रत्न १९ मरुदेवा के गर्भ में अवतरण ३६ | ४४ धर्म-प्रवर्तन २० आदि तीर्थंकर का जन्म ३८ । ४५ प्रथम चक्रवर्ती भरत महाराज की २१ दिशाकुमारी देवियों द्वारा शौच-कर्म " दिग्विजय २२ इंद्रों का आगमन और जन्मोत्सव ४० ४६ चक्रवर्ती की ऋद्धि २३ वंश स्थापना
४६ ४७ अठाणु पुत्रों को भगवान् का उपदेश २४ जन्म से चार अतिशय "
और दीक्षा २५ प्रभु के शरीर का शिख-नख वर्णन ४७ ४८ बाहुबली नहीं माने
29,
७५
~
Mr
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.