Book Title: Tirthankar Charitra Part 1 Author(s): Ratanlal Doshi Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 8
________________ ( 3 ) आवश्यक भाष्य गा. २६१ में एक दिन उपरान्त केवलज्ञान होना लिखा है। सूत्र में निर्वाण तिथि चैत्र शु. ४ लिखी है, परन्तु ग्रंथकार फाल्गुन शु. १२ बतला रहे हैं। परिवार की संख्या में भी अन्तर है । इस प्रकार के अन्तर अन्य तीर्थंकरों के चरित्रों में भी हो सकते हैं। इसलिए इस ग्रंथ की वे ही बातें प्रामाणिक मानी जाय जो आगमिक विधानों से अविपरीत हो । हमने एक अभाव की पूर्ति का प्रयास किया है। इसमें हमसे कई भूलें भी हुई होगी । अकेले काम किया है और संशोधन करने वाला भी कोई अनुभवी विद्वान् नहीं मिल सका । इसलिये इसमें कई भूलें रही होंगी | इतना होते हुए भी एक वस्तु प्रस्तुत हुई है, जिस पर आगे कोई महानुभाव परिश्रम कर के संशोधित संस्रण तैयार कर समाज के सामने प्रस्तुत कर सके । इस ग्रंथ में १९ तीर्थंकर भगवंतों, ८ चक्रवर्तियों और ७ वासुदेवों बलदेवों और प्रतिवासुदेवों के चरित्र समाविष्ट हुए हैं । प्रसंगोपात अन्य अनेक सम्बन्धित चरित्र भी आये हैं । हमारा विचार है कि इसके बाद दूसरे भाग में बीसवें तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी का और इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नमिनाथजी का चरित्र हो । भगवान् मुनिसुव्रत स्वामीजी के शासन में आठवें वासुदेव बलदेव ( श्री रामचन्द्रजी लक्ष्मणजी) हुए हैं, इससे यह चरित्र बड़ा होगा। तीसरे भाग में भगवान् अरिष्टनेमिजी म. का चरित्र होगा और अंत में भ. पार्श्वनाथजी और भ. महावीर स्वामीजी का चरित्र देने का विचार है । यह कार्य na पूरा होगा ? स्वास्थ्य और साधनों की अनुकूलता पर ही कार्य की प्रगति रही हुई है। इस ग्रंथ की एक हजार प्रतियों के सहायक - श्रीमान् सेठ लाधूरामजी पन्नालालजी गोलेच्छा खीचन निवासी हैं और दूसरी एक हजार प्रतियों के द्रव्य- सहायक श्रीमान् सेठ पारसमलजी मिलापचन्दजी बोहरा मंड्या निवासी हैं। दोनों महानुभाव धर्मप्रिय हैं और ज्ञान प्रचार की प्रबल भावना वाले हैं। इस सहयोग के लिये संघ आपका पूर्ण आभारी है | संघ ने अब तक जो भी धार्मिक साहित्य प्रकाशित किया है, उसका समाज में अच्छा स्वागत हुआ है । आज कितनी ही पुस्तकें हमारे स्टॉक में नहीं है और माँग बनी रहती है । ही रखा है। लागत से भी कम । साहित्य का मूल्य बहुत कम है । संघ से प्रकाशित साहित्य का मूल्य भी हमने कम अन्यत्र प्रकाशित साहित्य की तुलना में इस संस्था के संघ को समाज के पूर्ण सहयोग की आकांक्षा है । सैलाना रतनलाल डोशी भाद्रपद पूर्णिमा २०३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 426