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प्राक् कथन
परमवन्दनीय तीर्थकर भगवंत ही धर्म की आदि के कर्ता हैं--"जिनपण्णत्तं. तत्तं।" जिन तीर्थंकर भगवंत के धर्मशासन को शिरोधार्य कर के अनन्त जीव परमात्म पद प्राप्त कर गये और वर्तमान में भी जिनके मार्ग का अनुसरण कर के जो अपना उत्थान करते हैं, उन परमोपकारी भगवंतों के उत्थान का क्रम, पूर्वभवों का वर्णन एवं तीर्थकर भव का चरित्र जानना प्रत्येक उपासक के लिये आवश्यक है । सभी जिनोपासक जिनेश्वर भगवंतों का चरित्र जानने की इच्छा रखते हैं, परन्तु साधन उपलब्ध नहीं होने से विवश रहते हैं। इस अवसपिणी काल में हए तीर्थंकर भगवंतों का व्यवस्थित चरित्र हमारे समाज में है ही नहीं । स्व. सुश्रावक श्रीबालचन्दजी श्रीश्रीमाल रतलाम निवासी ने दो भागों में तीर्थंकर चरित्र प्रकाशित किया था, परन्तु वह संक्षेप में था और धार्मिक परीक्षा वोर्ड के विद्यार्थियों के उपयोग की दृष्टि से लिखा गया था। वह संक्षिप्त चरित्र भी आज उपलब्ध नहीं है।
भगवान् ऋषभदेवजी, शांतिनाथजी, अरिष्टनेमिजी, पार्श्वनाथजी और महावीर स्वामीजी के जीवन चरित्र तो मिलते हैं और ढाल-चोपाई के रूप में भी मिल सकते हैं, परन्तु समग्र रूप में--जैसा श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य का “त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र" है, वैसा कोई ग्रंथ नहीं था . । इस अभाव की पूर्ति का ही यह प्रयास है । इसका प्रारम्भ 'सम्यग्दर्शन' वर्ष १४ दिनांक ५ जनवरी सन् १९६३ के प्रथम अंक से किया था, सो अभी चल ही रहा है। जिनेश्वरों की धर्मदेशना का वर्णन सम्यग्दर्शन वर्ष १२के ५ जनवरी ६१ अंक से प्रारम्भ कर वर्ष १३ अंक १८ तक २०-९-६२ तक हुआ। इसका मुख्य आधार 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' है। हमने “चउप्पन्न महापुरिस चरियम," आगमों के फुटकर उल्लेख और कहीं-कही ढाल-चोपाई का भी उपयोग किया है। भगवान अरिष्टनेमि चरित्र लिखते समय तो आचार्य पू. श्री हस्तिमलजी म. सा. लिखित जैनधर्म का मौलिक इतिहास भी सम्मुख रहा है।
• गत वर्ष पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. लिखित "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" जयपुर से प्रकाशित हुआ है।
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