Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 10
________________ तीर्थ माला संग्रह " हंसरण नाण चरित तव वेरग्गेय होइउ पसत्था । जाय तहा ताय तहा लक्खणं वुच्छं सलक्खर प्रो ||३२|| तित्थगरारण भगव श्री पवयरण पावयरिण इसइड्डीणं । अभिगमरण नमरण द्ररिसण कित्तण संपूरणा थुरगणा ||३३०|| जम्मा भिसे निक्खमरण चरण नाणु प्पयाय निव्वाणे । दिय लोअ भवरण मंदर नंदीसर भोम नगरे सुं ||३३१|| अठावय मुज्जिते गयग्ग पयए य धम्म चक्के यं । पास रहा बत्तनगं चमरुप्पायंच वंदामि ।।३३२॥” अर्थात् - दर्शन, सम्यक्त्व ज्ञान, चारित्र, तप, वैराग्य, विनय विषयक भावनाऐं जिन कारणों से शुद्ध बनती हैं, उनको स्वलक्षणों के साथ कहूँगा ||३२|| तीर्थंकर भगवन्तों के उनके प्रवचन के प्रवचन प्रचारक, प्रभावक प्राचार्यों के केवल मनपर्यव अवधि ज्ञान वैक्रयादि अतिशायी लब्धिधारी, मुनियों के सन्मुख जाने, नमस्कार करने, उनका दर्शन करने, उनके गुणों का कीर्तन करने उनकी अन्न वस्त्रादि से पूजा करने से दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, वैराग्य, सम्बन्धी गुणों की शुद्धि होती है ॥ ३३० ॥ जन्म कल्याण स्थान जन्माभिषेक स्थान दीक्षा स्थान श्रमणावस्था की विहार भूमि केवल ज्ञानोत्पत्ति का स्थान और निर्वाण कल्याणक भूमिको तथा देव लोग प्रसुरादि के भवन मेरू पर्वत नन्दीश्वर के चैत्यों और व्यन्तर देवों के भूमिस्थ नगरों में रही हुई जिन प्रतिमाओं को तथा अष्टापद ( १ ) उज्जयन्त ( २ ) गजाग्रपद (३) धर्मचक्र (४) अहिच्छत्रास्थित पार्श्वनाथ (५) रघावर्तपदतीर्थ ( ६ ) चमरोत्पात ( ७ ) इन नामों से प्रसिद्ध जैन तीर्थों में स्थित जिन प्रतिमानों को मैं वन्दन करता हूँ । ( ३३१।३३२ ) नियुक्तिकार भगवान भद्रबाहु स्वामी ने तीर्थङ्कर भगवन्तों के जन्म, दीक्षा, विहार ज्ञानोत्पत्ति निर्वाण आदि के स्थानों को तीर्थ स्वरूप मानकर वहां रहे हुए जिन चैत्यों को वन्दन किया है, यही नहीं परन्तु राज प्रश्नीय जीवाभिगम, स्थानांग, भगवती आदि सूत्रों में वर्णित देव लोक स्थित प्रसुर भवन स्थित मेरू पर्वत स्थित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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