Book Title: Tirth Mala Sangraha Author(s): Kalyanvijay Gani Publisher: Parshwawadi Ahor View full book textPage 9
________________ तीर्थ माला संग्रह ( ११ ) भद्दिलपुर ( १२ ) चम्पापुरी (१३) कौशाम्बी (१४) रत्नपुर (१५) चन्द्रपुरी (१६) आदि तीर्थंकरों की जन्म, दीक्षा, ज्ञान, निर्वाण, की भूमियों होने के कारण ये स्थान भी जैनों के प्राचीन तीर्थ थे, परन्तु वर्तमान समय में इनमें से अधिकांश विलुप्त हो चुके हैं, कुछ कल्याणक भूमियों में आज भी छोटे-बड़े जिन मंदिर बने हुए हैं, और यात्रिक लोक दर्शनार्थ जाते भी हैं । परन्तु इसका पुरातन महत्व आज नहीं रहा इन तीर्थों को हम "कल्याणक भूमि" कहते हैं । और (ग) उक्त तीर्थों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी स्थान जैन तीर्थों के रूप में प्रसिद्धी पाये थे जो कुछ तो श्राज नाम शेष हो चुके हैं कुछ विद्यमान भी हैं इनकी संक्षिप्त नाम सूची यह हैप्रभास-पाटन-चन्द्रप्रभ ( १ ) स्तम्भ तीर्थ-स्तम्भनक पार्श्वनाथ (२) भृगु कच्छ अश्वाव बोध शकुनिका - विहार मुनिसुव्रत ( ३ ) सूपारक ( नाला सोपारा) (४) शंखपुर - शंखेश्वर पार्श्वनाथ ( ५ ) चारूप पार्श्वनाथ ( ६ ) तारङ्गाहिल - अजितनाथ ( ७ ) अर्बुद गिरि ( आबू माउन्ट ) ( ८ ) सत्यपुरीय महावीर ( 8 ) स्वर्णगिरि महावीर (१०) करटक - पार्श्वनाथ ( ११ ) विदिशा (भिलसा) (१२) नासिक्य - चन्द्रप्रभ (१३) अन्तरिक्ष- पार्श्वनाथ (१४) कुल्पाक आदिनाथ (१५) खन्डगिरि ( भुवनेश्वर ) (१६) श्रमण बेलगोल ( १७ ) इत्यादि अनेक जैन प्राचीन तीर्थ प्रसिद्ध हैं इनमें जो विद्यमान है उनमें कुछ तो मौलिक हैं तब कतिपय प्राचीन तीर्थों के स्थानापन्न नव निर्मित जिन चैत्यों के रूप में अवस्थित हैं। तीसरी श्रेणी के जैन तीर्थों को हम पौराणिक तीर्थ कहते हैं, इनका प्राचीन जैन साहित्य में वर्णन न होने पर भी कल्पों जैन चरित्र ग्रन्थों तथा प्राचीन स्तुति स्तोत्रों में इनकी महिमा गाई गई है । उक्त तीन वर्गों में से इस लेख में हम प्रथम वर्ग के सूत्रोक्त तीर्थों का ही संक्षेप में निरूपण करेंगे । सूत्रोक्त तीर्थ आचाराङ्ग निर्युक्ति की निम्न लिखित गाथानों में प्राचीन जैन तीर्थों का नाम निर्देश मिलता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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