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११ ส
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चानदेषने से नही होती के यह कोंन से समय यह अपने-अ स्थान से ले गई है परंतु जो मांदिल और वसंत में अपने अस्थान से लगई है तो मुन्नमहै औरजोभ्योषधी केज मजाने में सौरगाडे पन में प्रत्येक की क्रांति और रंगस् पवेसाई बना रहे तो यह उन का उन्नम पना है और प तली पोर नरम हो पर उसमें कोई दूसरी वस्तनमिलाई जाय उस्का वल तो कभीनजाय परंतु बुरी हो जाती हैं >पौर विगड जाती हैं और पत्यंत पुरानी होने से निर बल हो जाती है || नवातात॥अर्थात काष्टादिक वहु तवस्तुऐं के जिन के पेड उपजते हैं उन के भी दो भेद । एक तो वह जिन के पेड वर्षोपरियत रहते हें मोरेजवपे डवढजाता है तो हर साल नवीन पन्ना आते है दूसरा ह रवर्षमें साथ पे पेदा होती है और वर्ष दिन से विशेषना हीरहेती है परंतु कोई काररंग करके थोडा बहुत रह जातेहैं पर सब काष्टादिक घुन सड जानीहें मोरजन का रंगरूप स्वाद बदल जाता है और दरगंध माने लगा। ती है और जब पुरानी पड़ जाती हैतव काम में लाने के योग्य नही रहती है पहली किसम के पेडों के पन्नापत डहो जाने पीछे अवनयेपत्ते वैतवजनको लेना उचित है और कलीजव बिलने लगे तब ले मरज व पेड पर सेगिर पडेतवले औरफलक चे औरप क्केदोंनाले अपने समय का माती हे जेसें वमूरका कचाफललीयाजाय है क्यों पूरा वलन सी में होता है
और इमली का पक्का फल लेने हैं का बुरा होता है। और वीजपक्के फल का लाया जाता है और आसमय
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