________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१३४
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मंद्विषमज्वर को दूर करै॥] विधि|| नीलोफर के फूल गाव जुबां के पत्ता दो तोले। वनफशा के पत्रा सुपेद चंद न चूरो। हरी गिलोइ। एकश्तोले धीरा कोरस लेने घीया को रस साधश्यावा षट्टेभ्वनार को रस छटॉक भर । सुपे दकंद ९९ छटॉक की चाशनी करें। धारवत वजूरी ॥ मादिल || जो ज्वर और कलेजे और गुरदेको रोगों को गुण करें और मुवादको बहाके निकाले है।वि। |धि॥ कासनी के बीज! सेंौफ। खछूजा के वीज । एकर तोले । कासनी कीअड) सौंफ की जड़। डेढ २ तोले। सुपे द वूरो पावसेर लेके शरवतवनाले ॥ शरबत विजू रीगरम ॥ओ कलेजे की सरदी और गुरदे सरजदर की सरदी के रोगों को और ज्वरोंको "एकरे। || विधि॥ कासनी की जड़ का छिल का । ३ तोले । सो फकी जड़ का छिलका। कासनी के बीज । दोश्तोले । सोफ अजमोद की जड। एक २ तोले। अकासवेल के बीज छै मासे । याध सेर सुपेदबूरो लेके शरबतव नाले 11 प्रारवत विज़ूरी ठंडा। जोकलेजे कीगर मी के रोगों को खोर पित्तज्वरों को और गुरदे और म साने के रोगों को गुरण करैहै ॥ विधि॥ कासनी कजिड का छिलका २ तोले। रवर बूजा के वीज । श्रीराककड़ी के बीज । डेढ २ तोले। ढाईपान सुपेद बूरा लेके चाश नी करके शर वतवनाले चोर होती चाशनी में तर वृ ज की मीगी। पेठे की मींगी एक२ तोले कुचल केमिला वे ॥ शरवत विजूरी || जो जीर्ण ज्वर और कमलघा मको दूर करे और मूत्र और स्त्रीधर्म को जारी करें
For Private and Personal Use Only