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विज्ञापनयत्र दूसविद्याकेजानने वाले तथासीखने वालों सेपाथना है कि इस पुस्तक का किसी उस्तादसे माधोया तलो एक बार पढ़लें क्योंकि एक तो इसमें लेखकदोय से जो अशुद्ध रहगया होयगाउस्को-और दूसरे इसमें हमने जहाँ तक होमका हिन्दीभावाके पद लिखे हैं। तथायि इस्में अर्बी,फारसी के प्राब्द बहुतरह गये हैंउनका बिना उस्ताद के बताये यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकेगा।
और इसकानाम हिन्दीभाया में तिब्दरत्नाकर रकला गया है- जहाँ कहीं मूलचूकही कृपा दृष्टि कर सुधार लें।
अर्जी हमारी परमरजी तुम्हारी है अवहम मापारक्वते हैं कि इस पूर्व ग्रंथको दिख इस विद्याकेजानने वाले बुद्धिमान मनुथ क्यार पति अपने पुस्तकालय मेंनसुशोभित करेंगेजरूर ही करेंगे।
दाण्यामलाल
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