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रै मोर चित्र प्रसन्न करें चगर चढ़नाउमेद भी होग या हो ॥ विधि ॥ चमेली का तेल -आध पाव एकशी शी में रष के कवरस्थान की बडीबडी बैंटी एक सो ले के वामें डाल के ४० दिन धूप में राधे फिरइन्ट्री पर खुजला के लगाया करे । रोगन खुक।। र्थात गोष, रूका तेल जो वीर्य को गाढा करें और कामदेव को प्रवल औरम साने और गुरदे की शुद्धी करें। विधि ॥ बडे गोषु रू ताजा को कुचल के उस्कारस निकाले डेढपा न और गाय का दूध डेढ पाव और सुपेद तिलीकाने ल पावसेर और छठोंक सोंठ का चूरन भिला के मंदी यांच पर पकावै जव दूध और रस जल जाय तुव तेल को छान ले और जितना चाहे उतना माया करें। रो गन ॥ यह मेरे छोटे भाई समान खली हकीम काव नाया हुच्या जो या का लेप करना इन्ट्री पर कामदेव को वढा चै और रंगों की सुस्ती को दूर करे और जोडों कीषु स्की -थोरनसें बाहर निकल खाने को विशेषमुत्तमः दैविधि सुपेद चिरमिठी का छिल का। सुपेट् फू ल की कनेर की जड़। असगंध नागौरी। तजा दान्म श्री | नी। अकर करा । ताल भपा ने । उटंगन के वीजा इन्ट् । जो। यस बंद। कलोंजी। प्याज के बीज बिनोले की । मीगी। मालकांगनी । घोड़े के घुर। कटे हुये । छेश्मा से। चिरोंजी । चिलगोजा । ऊँटकटारे की जड़ देवदार मगर| काली मूसली एक २ तोले। आय फला लोंग | रसकपूर। धनूरे के बीज । तीनर मासे। अफीम२ मा से सब को कूट के । डेढ छटाँक भेड के घी में तथा गाय
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