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बावीस परीषह ... सूक्ष्म सांपराय में और वीतराग छद्मस्थ के चौदह परीषह जिन के ग्यारह परीषह बादर सांपराय के सभी परीषह ज्ञानावरण कर्म के उदय से दो परीषह .... प्रदर्शन और अलाभ परीषह का कारण ... चारित्र मोहनीय के निमित्त से सात परीषह वेदनीय कर्म से ग्यारह परीषह एक साथ उन्नीस परीषह संभव हैं चारित्र के पांच भेद बाह्य तप अन्तरंग तप अन्तरंग तप के प्रभेद प्रायश्चित्त के भेद . विनय के भेद वैयावृत्य के दस भेद स्वाध्याय के पांच भेद उपधि त्याग रूप व्युत्सर्ग ध्यान का लक्षण ध्यान के भेद मोक्ष के कारणभूत ध्यान अनिष्ट संयोगज आत ध्यान इष्ट वियोगज आर्तध्यान पीड़ा चिन्तन आत ध्यान निदान आत ध्यान बात ध्यान के गुणस्थान, .... रौद्रध्यान . .. धर्म्यध्यान .
... . शुक्लध्यान के स्वामी
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