Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ १०१ चारित्रचिनयतप का निरूपण स्व० २७ ६८२-६८७ १०२ मन, वचन, कायविनयरूप का निरूपण सू० २८ ६८८-६९२ १०३ लोकोपचारविनयतप का निरूपण सु० २९ ६९३-६९६ १०४ आभ्यन्तरतप के छठा भेद व्युत्सर्ग का निरूपण सू० ३० ६९७१०५ द्रव्यव्युत्सर्गतप का निरूपण सू० ३१ ६९८-७०० १०६ भावव्युत्सर्गतप का निरूपण सू० ३२ ७०१-७०३ १०७ कषायव्युन्सर्गतप का निरूपण मू० ३३ ७०४-७०५ १०८ संसारव्युत्सर्गतप का निरूपण सू० ३४ ७०६-७०८ १०९ कर्मव्युत्सर्गतप का निरूपण मू० ३५ ७०९-७१३ ११. निर्जरा सबको समान होती है ? या विशेषाधिक ? सू०३६ ७१४-७२६ १११ मोक्षमार्ग का निरूपण सू० ३७ ७२७-६३५ ११२ सम्यग्दर्शन का निरूपण सू० ३८ ७३६-७३९ ११३ सम्यग्दर्शन की द्वि प्रकारता का निरूपण सू० ३९ ७४०-७४२ ११४ सम्यग्ज्ञान स्वरूप निरूपण मू०४० ७४३-७४७ ११५ सम्यग्ज्ञान के भेदों का कथन सू० ४१ ७४८-७५७ ११६ मतिश्रुतज्ञान के परोक्षस्व का निरूपण सु० ४२ ७५८-७६० ११७ अवधि, मनःपर्यव, केवलज्ञान के प्रत्यक्षत्व का निरूपण मू०४३ ७६१-७६५ ११८ मतिज्ञान के द्वि प्रकारता का कथन सू०४४ ७६६-७६९ ११९ मतिज्ञान के चातुविय॑त्व का निरूपण सू० ४५ ৩৩০-৩৩৩ १२० अवग्रह के दो भेदों का निरूपण सू० ४६ ७७८-७८५ १२१ श्रुतज्ञान के दो भेदों का कथन सू० ४७ ।। ७८६-७९३ १२२ अवधिज्ञान का निरूपण सू० ४८ ७९४-७९९ १२३ मनःपयेंवज्ञान के द्विविधत्व का प्रतिपादन मु० ४९ ८००-८०८ १२४ पांच प्रकार के ज्ञानों में मतिश्रुतज्ञान की विशेषता ८०९-८१३ १२५ अवधिज्ञान विषय का निरूपण ८१४-८१६ १२६ मनःपर्यय ज्ञान के वैशिष्य का निरूपण ८१७-८१९ १२७ केवलज्ञान की उत्पत्ति के कारण का निरूपण ८२०-८२२ १२८ केवलज्ञान के लक्षण का निरूपण ८२३-८३१ श्री तत्वार्थ सूत्र : २

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