Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 10
________________ www.kobatirth.org. चाया– द्वादश चैव मुहूर्तान् उपरि विध्वंसं गच्छति सा तु । जीवानां परिसंख्या, लक्षपृथक्त्वं चोत्कृष्टम् ॥१२॥ भावार्थ- -पुरुष के वीर्य से संयुक्त स्त्री की योनि बारह मुहूर्त तक ही अध्वस्त यानी गर्भ धारण करने योग्य रहती है, उसके बाद यानी बारह मुहुर्त के पश्चात् उसको गर्भ धारण की योग्यता नष्ट हो जाती है। बो के गर्भ में गर्भ जन्तुओं की संख्या दो लाख से लेकर नौ लाख तक की कही गई है ॥ १२ ॥ पणाय परेण, जोणी पमिलायए महिलियागं पणसत्तरि परओ, पाएण पुमं भवेऽवीओ ॥१३॥ छाया—पञ्चपञ्चाशद्द्भ्यः, परेण योनिः प्रम्लायते महिलानाम् । पञ्चसप्ततिभ्यः परतः, प्रायेण पुमान् भवदेवीर्य्यः ॥ १३॥ भावार्थ१-५५ वर्ष के बाद स्त्री की योनि गर्भधारण करने योग्य नहीं रहती है तथा ७५ वर्ष के बाद पुरुष भी वीर्य हीन हो जाता है || १३|| Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास सयाउय मेयं, परेण जा होइ पुव्त्रकोडीओ । तस्सद्धे अमिलाया, सव्वाउय वीसभागो य || १४ || छाया - वर्षशतायुष्कमेतद्, परेण या भवति पूर्व कोटिः । तस्याद्वे अम्लाना, सर्वायुर्विंशति भागश्च ||१४|| भावार्थ- पूर्व की गाथा में जो कहा गया है कि- ५५ वर्ष के बाद स्त्री की योनि गर्भ धारण करने के योग्य नहीं रहती है और पुरुष भी ७५ वर्ष के बाद बी हीन हो जाता है यह बात आजकल के सौ वर्ष की आयु के हिसाब से समझनी चाहिये । सौ वर्ष से अधिक जिनकी आयु है उन प्राणियों के विषय में पूर्वोक्त नियम नहीं है किन्तु उनकी आयु के आधे समय तक स्त्री की योनि गर्भ चारण करने योग्य रहती है और पुरुष अपनी आयु के बीसवें भाग में वीर्य्यं हीन होता है यह जानना चाहिये ||१४|| For Private And Personal Use Only 99395

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