Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 64
________________ SinMahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir EE भावार्थ:-हे आयुष्मन् ! इस शरीर में पीठ की हड्डी में क्रमशः अठारह सन्धियाँ हैं। उनका आकार बाँस की गाँठ के समान है। उन अठारह सन्धियों में से बारह इड़ियाँ निकली हुई हैं जो पसली कहलाती हैं। वे पसलियाँ छाती के मध्य में ऊपर की ओर जाने वाली दही में लगकर स्थित हैं। पीठ की हड्डी में जो छः सन्धियाँ शेष हैं, उनमें से छः हड्डियों निकल कर दोनों पाश्वभागों को घेर कर स्थित है। वे हृदय के दोनों तरफ छाती से नीचे रहती हैं। जिन लोगों का कुक्षि (पेट) ढीली होती है उनकी ये हड़ियाँ परस्पर मिली हुई नहीं होती हैं। इन इड़ियों को कडाह कहते हैं। मनुष्यों की कुक्षि दो वितस्ती का होती है और गर्दन चार अङ्गन की एवं जीभ चार पल की होती है। नेत्र के दोनों गोलक दो पल के होते हैं। हांडयां के चार खंडा से शिर बना होता है। मुख में बत्तीस दाँत होते हैं। जोभ अपनी अपनी अङ्गलि के प्रमाण से सात अङ्गल की हाता है। हृदय का मास खण्ड साढे तीन पल का होता है। छाती के भीतर का मांस खण्ड जिसे कलेजा कहते हैं वह पचीस पल का होता है। अंतडियाँ दो होती हैं। वे दोनों पाँच पाँच वाम प्रमाण की होती हैं। उनमें से एक स्थूल होती है और दूसरी सूक्ष्म होता है। जो स्थूल अंतडी होती उसके द्वारा मल बनता है और जो सूचम है उसके जास मन्त्र बनता है। पाश्वे दो होते है एक बाम और दूसरा दक्षिण। इनमें से वाम पार्श्व सुख से अन्न पचाता है और दक्षिण पार्श्व दुःख से पचाता है। उसो! इमम्मि सरीरए सहि संधिसय सत्तु त्तरं मम्मसयं तिषिण अविदामसयाई नव पहारुसयाई सत्त सिरा सयाई पंच पेसी सयाई नव धमणीओ नवनउई य रोमकूब सयसहस्साई विणा केस मंसुणा, सह केसमंसुणा अदुआट्ठो रोमकूवकोडीओ। उसी ! इमम्मि सरीरए सट्टि सिरासयं नाभिप्पभवाणं उड्ढगामिणीणं सिरमुवगयाणं जामो रसहरणीओत्ति 5197510EN DIESES E ESSERE BEES For Private And Personal use only

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