Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 82
________________ Acharya Sa Kesegaran Gymandir सुहवाससुरहिगंध, बायसुह अगरुगंधियं अंगं । केसा एहाससुगंधा, कवरो से अप्पणो गंधो ॥ १२० ॥ छाया-शुभवाससुरभिगन्धं, घातसुखमगुरुगन्धितमङ्गम् । केशाः स्नानसुगन्धाः, कतरस्ते आत्मनी गन्धः ॥ १२०॥ मावार्थ:-तुम्हारा असुगन्धित चूर्ण लगाने से तथा अगर के धूप से धूपित होने से पर-निमित्तवश उत्तम गन्ध युक्त प्रतीत होता है। पवन के संयोग से पद शीतल सुखदायी प्रतीत होता है एवं तुम्हारे केश स्नान करने के पश्चात् सुगन्ध तैनादि के लेपन से सुगन्धित हो रहे हैं। बताओ इनमें तुम्हारा कौनसा अपना गन्ध है ॥ १२० ।। अच्छिमलो कएणमलो, खेलो सिंघाणो य पूओ य । असुई मुत्त पुरीसो, एसो ते अप्पणी गंधो ।। १२१ ॥ छाया-अक्षिमला फर्णमला, संला सिंहानकश्व पूतिकश्च । अशुची मत्रपुरीपी, एष ते भारमनी गन्धः ॥ १२१॥ भावार्थ:-आँखों का मल, कानों का मल, खंखार, नाक का मल, पीव ( रस्सी) पौर अशुचि मूत्र और विष्ठा ये ही सब तुम्हारे अपने गन्ध हैं ।। १२१ ।। जाओ चिय इमायो इत्थियायो अमोगेहि कइवर सहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धं हि कामरागमोहहिं वएिणयाश्री लामो वि एरिसाओ, तंजहा, १ पगइविसमायो, २ पियवयणवल्लरीयो, ३ कइयवपेमगिरितडीओ, ४ अवराहसहस्स घरणीओ, ५ पभवो सोगस्स, ६ विखासो बलस्स,७सूणा पुरिसाणं, ८ पासो लजाए, 8 संकरो अविणयस्स,१० शिलयो थियडीणं, ११खणी पइरस्स, १२ सरीरं सोगस्स, १३ भेयो मज्जायाणं, १४ आसानो-रागस्स, १५ णिलो दुश्चरियाणं, १६ माईए For Private And Personal use only

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