Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 95
________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kellegagamur yanmandir छाया-असिमपिसदृशाणा, कान्तारकपाट चारकसमानाम् । घोरनिकुरम्बकन्दर चलद् बीभत्स भावना ॥१२२ ॥ भावार्थ:-खियाँ तलवार के समान तीक्ष्ण और कज्जल के समान मलिन होती हैं। जैसे तलवार निर्दयता के साथ मनुष्यों कोदन करती है, इसी तरह खियाँ मनुष्यों के लिए इस लोक तथा परलोक में दारण दुःख उत्पन्न करती हैं। जैसे काजल श्वेत वस्तु को काला कर देता है, उसी तरह खियाँ कुलीन सवाचारी पुरुषों को कलङ्कित कर देती हैं। खियाँ गहन वन, कपाट तथा कारागृह के तुल्य होती हैं। जैसे गहन वन व्याघ्र आदि हिंसक प्राणियों का पाश्रय होने से भयदायक होता है, ससी तरह स्त्रियाँ पुरुषों के धन जीवन भादि के विनाश के कारण होने से भयदायक होती है। जैसे किसी मकान या गली का फाटक बन्द कर देने से उसके भीतर कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। इसी तरह खियाँ धर्म रूपी मार्ग को बन्द कर देती हैं। अतः स्त्री में भासक्त पुरुषों का धर्म मार्ग में प्रवेश करना अशक्य है। जैसे कारागृह (जेल) में रहने वाले दुःख भोगते हैं। उसी तरह स्त्रियों में आसक्त जीच दुःका भोगते हैं। इसलिये खियाँ पुरुषों के लिए कारागृह के तुल्य हैं। खियों के हृदय का भाव कपट से परिपूर्ण होता है। वह इस प्रकार भयदायक है जैसे अगाधजल चलता हुमा भयकर होता है। अत: बुद्धिमानों को इनका विश्वास नही करना चाहिये ।। १२३ ।। दोस सयगागरीणं, अजससय विसप्पमाण हिययाणं । कइयव पएणत्तीणं, ताणं अण्णायसीलाणं ।। १२३ ।। छाया-दोषशत गर्गरिकाणा, अयशः शतविसर्पहृदयाणाम । कैतव प्रज्ञप्तीना, तासा मशातशीलानाम् ॥ १२३॥ भावार्थ-त्रियों सैकड़ों प्रकार के दोषों का पड़ा है। इनके हृदय में सैकड़ों बुराइयाँ चलती रहती है। इनका विचार कपट से पूर्ण होता और बड़े बड़े विद्वान् भी इनके स्वभाव को नहीं जान सकते है ।। १२३ ।। For Private And Personal Use Only

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