Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 92
________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Keilassagarmur yamandir METERSIMIRESTMINISTERSTRESSENSEENE भासीव व्यवहरन्ति । कश्चित् शत्ररिव, रोर इव काश्चित् पादयोः प्रणमन्ति, काश्चित् उपनतेषु नमन्ति, काश्चित् कौतुकं नमन्ति, काश्चित् | सुकटाक्षनिरीक्षितः सविलासमधुरैः उपहसितैः उपगृहीतः उपशम्दै गुरुकदर्शन भूमिलेखनविलखनैश्च आरोहणनर्तनैश्च बालकोपगृहनैश्च अङ्ग लिस्फोटनस्तनपीडन कटितटयातनाभिः तर्जनाभिश्व, अपि च ताः पाशवत् व्यवसितु, याः पङ्कपत् क्षेप्तु, या मृत्युरिच मारितु, याः अग्निरिव दग्धु मसिरिवच्छेच, याः॥१७॥ ___ भावार्थ:-जिनका स्वरूप पहले कहा गया है और आगे भी कहा जाने वाला है उन खियों में जो अत्यन्त अधम दासी और दुराचारिणी स्त्रियाँ है उनके नामों की व्याख्या अनेक प्रकार से की जाती है। अधम स्रियाँ पुरुषों को, जो उनमें भासक हैं, हजारों उपायों द्वारा वध और बन्धन का भाजन बनाती हैं, इसलिये उनके बराबर पुरुषों का दूसरा शत्र न होने से वे 'नारी' कहलाती हैं। पुरुषों का खियों के तुल्य दुसरा शत्रु नहीं है इसलिये वे नारी कहलाती है। खियाँ विविध प्रकार के कम तथा शिल्प के द्वारा पुरुषों को मोहित कर लती है इसलिये उन्हें 'महिला' कहते है। खियाँ पुरुष को पागन की तरह बना देती हैं इसलिये वे 'प्रमदा' कहलाती है। स्त्रियाँ महान् कलह उत्पन्न करती हैं इसलिये वे महिलिका' कही जाती हैं। ये हाव भाव आदि लीलाओं द्वारा पुरुषों को रमण कराती है इसलिये 'रामा' कही जाती है। वे अपने आज प्रत्यङ्गों में पुरुषों को आसक्त करती हैं इसलिये 'अना' कही जाती हैं। पुरुषगण नियों के कारण परस्पर मार पीट करते हैं, गालागाजी करते हैं, परस्पर शस्त्र का प्रहार करते हैं, घोर जङ्गलों में भ्रमण करते हैं, बिना प्रयोजन ऋण लेते हैं, सर्दी और गर्मी का कष्ट सहन करते हैं। इसी तरह वे अनेक प्रकार के क्लेशों का अनुभव करते हैं। त्रियाँ पुरुषों को उक्त कार्यों में प्रवृत्त करती हैं इसलिये वे 'ललना' कहलाती हैं। ललनाएँ कामातुर करके पुरुष को अपने परा में कर लेती हैं। वे अपने वचन, शरीर, हास्य और अङ्गविक्षेप बादि द्वारा तथा मन में कामविकार उत्पादन द्वारा पुरुषों को For Private And Personal Use Only

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