Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 70
________________ SA.Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatiram.org Acharya ShriKailassagarsunGyanmandir 165888310EWE EEEEEEEEEE दुरन्त अस्थिधमनि सन्तान सन्ततं सर्वतः समस्तात् परिखवञ्च रोमकः स्वयमशचि स्वभावतः परमदुर्गन्धि कालिजकान्प्रपित्त ज्वरदय फोप्फस फिफ्फिस सीहोदरगृह्य करिणम नबछिद्र द्रिग द्विगाय मान हृदयं दुर्गन्ध पिरासिभमूऔषधायतनं सर्वतो दुरन्तं गुह्योरुजानजछापाद सञ्चातसन्धितम् अशुचिकुणिमगन्धि एवं चिन्त्यमानं बीभत्सदर्शनीयं अध व मनियतमशाश्वतं शटनपटनविध्वंसनधर्म पश्चादा पूर्व वा अवश्य त्यक्तव्यं निश्चयतः सुष्टु जानीहि एतद् आदिनिधनम् । इदृशः सर्वमनुजाना देहः । एष परमार्थतः खभावः ॥ सूत्र १७॥ भावार्थ-यह मनुष्य का शरीर शिर की खोपड़ी, मेद, मज्जा, मांस, शिर का स्नेह, रक्त, बालुर हक (शरीर के भीतर का एक अवयव) चर्मकोश, नाक का मल और विष्ठा आदि क्षित मलों का घर है। यह सुन्दरता से वर्जित है। यह शिर की खोपड़ी के मल तथा नेत्र, कान, ओष्ठ, कपोल और तालु के मलों से परिपूर्ण है इसलिये यह अभ्यन्तर प्रदेश में अत्यन्त पिच्छिल है तथा धूप आदि लगनेपर चादर भी पसीना होजाने से पिच्छिल होजाता है। दांतों के मल से यह और अधिक मलिन है। जब रोग आदि के द्वारा मनुष्य कृश हो जाता है उस समय इस शरीर का दृश्य और अधिक बीभत्स (घृणासद) हो जाता है। भुजा, अङ्गलियाँ, अङ्ग प्ठ और नखों की सन्धियों से यह शरीर जोड़ा हुआ है। अनेक प्रकार के तरल रसों से यह परिपूर्ण है। तथा कंधे फी नसें और हड़ियों को बाँध रखने वाली अनेक शिरायें एवं हड़ियों की सन्धियों से यह शरीर बैंधा हुआ है। इस शरीर का उदर कडाह के समान है, जिसे सभी लोग प्रत्यक्ष देखते हैं। जैसे पुराने सूखे वृत्त में कोटर होता है उसी तरह दोनों भुजाओं के मूल में कक्ष प्रदेश है। उस कक्ष प्रदेश में बुरे लगने वाले बाल भरे होते हैं। इसका विनाश बहुत बुरी तरह होता है। यह हड़ियों और शिराओं के समूह से भरा हुआ है। जिस तरह सच्छिद्र घडे से जल सदा निकलता रहता है इसी तरह इस शरीर के रोम कूपों से हमेशा पसीने का जल For Private And Personal use only

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