Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 69
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra 3100130 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाया - मानुष्यकं शरीरं, पूतिमद् मासशुक्रास्थिभिः । परिसंस्थापितं शोभते, अच्छादन] गन्धमाल्येन ||८४|| भावार्थ- -यह मनुष्य का शरीर अपवित्र है। मांस, शुक्र और हड्डी से बना हुआ है। यह वस्त्र, गन्ध और माला धारण करने से सुशोभित होता है ॥४॥ इमं चैव य सरीरं सीसघडीमेय मज्जमंसट्टियमत्थुलुंग सोणियवालु' डयचम्मकोसनासियसिंघाणयधीमलालयं अमगुणगं सीसघडी भंजियं गलंतरायणं करणो गंडतालुयं अवालुयाखिल्ल चिकणं चिलिचिलियं दंतमलमइलं बीभच्छदरिसणिज्जं अंसलगबाहुलगअंगुली अंगुट्ठगनहसंधि संघाय संधियमिगं बहुरसियागारं नालखंधच्छिरा अरोग एहारु बहुधमणिसंधिन पागडउदरकवालं कक्खनिक्खुडं कक्खगकलियं दुरंतं अद्विधमणि संताण संतयं सब्बओ समंता परिसवंतं य रोमक्रूवेहिं सयं असुई सभावओ परमदुग्गंधि कालिञ्जय अंतपित्तजर हियं य फोप्फस फेफस पिलिहोदर गुज्झकुणिम नवबिधिविधिवंतहिययं दुरहिपित्त सिंभमुत्तोसहाययणं सव्वच दुरंतं गुज्झोरुजाणुजंघापाय संघाय संघियं असुर कुणिम गंधि, एवं चितिजमागं बीभच्छदरिसणिजं अधुवं अनिययं असासयं सडण पडणविद्धंसाधम्मं पच्छा व पुराव अवस्स चइयव्वं निच्छयओ सुट्टुजाण एवं आइनिहणं एरिसं सव्वमणुयाणं देहं एस परमत्थओ सभाओ । (सूत्रम् १७ ) छाया - इदचैव शरीरं शीर्षघटी मेदोमज्जा मौसमस्तुलुङ्गशोणितयालुण्डक धर्मकोश नासिकाम लधिङ मलालयं अमनोज्ञकं शीर्षपटभजितं गलनयनं कर्णोष्टगण्टतालुकं अवालुल्लिचिकणं चिगचिगायमानं दन्तमलमलिनं बीभत्सदर्शनीयं अंसबाङ गुल्यङगुष्ठनसमन्धिसङ्घातसन्धितमिदं बहुर सिकागारं वालस्कन्धशिराऽनेक स्नायु बहुधमनि सन्धिनद प्रकटोदर कपाल कक्षनिष्कुटं कक्षागफलितं For Private And Personal Use Only ६४

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