Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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जीवेणं भंते ! गम्भगए समाणे पर मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए ? गोयमा ! णो णडे समझे। से | केण्डेणं भंते ! एवं बुच्चइ ? गोयमा ! जीवेणं गब्भगए समाणे णो पहू मुहेणं कावलियं आहारं पाहारित्तए ? गोयमा ! जीवेणं गभगए समाणे सव्वो आहारेइ सम्बो परिणामेइ सब्बो ऊससेइ सबो नीससेइ, अभिक्खणं आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं ऊससेइ अभिक्खणं नीससेइ, पाहच्च आहारेइ आहच्च परिणामेइ आहच्च ऊससेइ श्राहच्च नीससेह। माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी माउजीवपडिपदा पुत्तजीवं फुडा तम्हा आहारेइ तम्हा परिणामेइ अवरा वि णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीव फुडा तम्हा चिणाइ । से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं बुचइ-जीवेणं गभगए समाणे णो पहू मुहेणं कावलियं आहारं पाहारित्तए । सूत्र ४ ॥
छाया-जीबो भदन्त ! गर्भगतः सन् प्रभुम खेन कालिक माहार माहातुम् ! गौतम ! मायमर्थः समर्थः । अथ फेनार्थेन भदन्त ! एव मुध्यते गौतम ! जीवो गर्भगतः सन् न प्रभुः मुखेन काबलिक माहार माहतुम् ? गौतम ! जीवो गर्भगतः सन् सर्वत । श्राहारयति सर्वतः परिणामयति सर्वतः उच्छ वसिति सर्वतः निःश्वसिति, अभीक्ष्णमाहारयति अभीक्ष्णं परिणामयति अभीक्ष्ण मुच्छ वसिति अभीषणं निःश्वसिति। आहत्य (कदाचित् ) आहारयति आहत्य परिणामयति आहत्य उच्छ वसिति आहत्य निःश्वसिति मातृजीवरसहरणी पुत्रजीवरसहरणी मातृजीय प्रतिबद्धा पुत्रजीवं स्पृष्टा तस्मादाहारयति तस्मात् परिणामयति अपरापि पुत्रजीवप्रतिबद्धा मातृ जीवस्पृष्टा, तस्मात् चिनोति । अथानेनार्थेन गौतम ! एव मुच्यते जीवः गर्भगतः सन् न प्रभुः मुखन कायलिक माहारमाहतुम ॥ ४ ॥
भावार्थ-हे भगवन ! गर्भगत जीव मुख द्वारा कबलाहार को प्रहण करने में समर्थ है या नहीं ? हे गौतम ! यह बात नहीं हो सकती
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