Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 17
________________ Acharya Sa Kasagaran yamandir EEIGHEACHEMESTERESISEASEASESEGESHSHESISATE छाया-जीबो गर्भगतः सन् किमाहार माहारयति । गौतम! या तस्य माता नानाविधाः नवरसविकृतीः तिक्त कटु कषायाम्ल मधुराणि द्रव्याणि आहारयति तत एक देशेन प्रोज आहारयति । तस्य फलन्यत सरशी उत्पलनालोपमा भवति नाभिरसहरणी जनन्याः सदा नाभ्या प्रतिपदा भाभ्या तया गर्भःभोजमाद। भुजानायां श्रीजसा तस्यां गभों विवधी याचाजात इति ॥ ५॥ भावार्थ-दे भगवान् ! गर्भ का जीव क्या आहार खाता है ? हे गौतम ! गर्भधारण करनेवाली माता जो दूध भावि रसीले पदार्थ तथा तिक्त, कटु, कसैले, खट्टे और मोठे पदार्थों का माहार करती है उसके अंशभूत शुक और शोणित समूह को अथवा माता के माहार से मिले हुए शोणित को वह गर्भ भवाण करता है। उस गर्भ का नाभिनाल फल की इंटी और कमल की नाल के समान होता है। वह नाभि नाल माता की नाभि से सदा ही जुटा हुआ रहता है। उस नाल के द्वारा ही वह गर्भ ओज आहार को ग्रहण करता है। जब उसकी माता आहार खाने लगती है तब वह गर्भ भी माता के आहार से मिले हुए शुक और शोणित रूप ओज आहार को प्रहण करके वृद्धि को प्राप्त होता है और वृद्धि को प्राप्त होफर जन्म लेता है।॥५॥ करणं भंते ! माउभंगा पण्णता ? गोयमा ! तो माउअंगा पएणत्ता, तं जहा-मंसे, सोणिए, मत्थुलुंगे। करणं भने पिउभंगा पएणता' गोयमा ! तो पिउगा पराणत्ता, तं जहा-अट्टिमट्ठि मिजा, केस मंसुरोम नहा ॥ सत्र ६ ॥ S431918181994SHOTSITISISISEGISSISISISESARIES छाया-कति भदन्ता ! मातुरनानि प्रशसानि ? गौतम! त्रीणि मातुरङ्गानि प्रजातानि तद्यथा मास, शोणितं मस्तुलुग। कति भदन्त । पितुरमानि प्राप्तानि ? गौतम ! श्रीणि पितुरङ्गानि प्राप्तानि तयथा-अस्थि, अस्थिमिजा, केशश्मत्रु रोमनसाः ॥६॥ For Private And Personal Use Only

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