Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 59
________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya ganun yonmandir BESTA 33 WE BEEEEEEEEEEEASI 633202 भावार्थ:-दिन रात में तीस और एक मास में नौ सौ मुहुर्त प्रमादो के नष्ट होते हैं परन्तु अज्ञानी जीवों को इसका ज्ञान नहीं होता है।॥ ७४ ॥ तिएिण सहस्से सगले, छच सए उडुपरो हरइ आउं । हिमंते गिम्हासु य, वासासु य होई णापब्वं ।। ७५ ।। छाया-श्रीणि सहस्राणि सकलानि, पशतानि उडुवरो हरत्वायुः । हेमन्ते प्रीष्मासु च, वर्षासु न भवति तातव्यम् ।। ७५ ॥ भावार्थ:-हेमन्त ऋतु में सूर्य छ: सौ तीन हजार मुहूर्त आयु को हरण करता है। इसी तरह पीष्म ऋतु और वर्षा त्रातु जानना चाहिये ॥५॥ बाससयं परमाऊ, इत्तो पराणास हरइ निदाए । इत्तो बीसइ हावा, पालतं बुड्ढभावे य ।। ७६ ।। छाया-वर्षशतं परमायुः, इती पञ्चाशत हरति निद्रया । इतो विंशतिहीयते, पालखे युद्धमाये च ॥ ७ ॥ भावार्थः-मनुष्यों की परम आयु सौ वर्ष की होती है, उसमें से पचास वर्षे तो वह सोने में नष्ट कर देता है। बाकी ५० वर्ष में से १० वर्ष पाल्यकाल में और दस वर्ष वृद्धावस्था में नष्ट करता है। इस प्रकार ५० में से २० वर्ष निकल कर शेष ३० वर्ष की आयु के बचते हैं ।। ७६ ॥ सीउराह पंथ गमणे, सुहापिवासा भयं य सोगे य । णाणा विहा य रोगा, हवंति तीसाए पच्छद्धे ॥ ७७ ।। छाया-शीतोष्ण पथिगमनानि, क्षतिपासे भयञ्च शोकश्च । नानाविधाश्च रोगाः, भवन्ति निशतः पवाद ।। ७७ ।। For Private And Personal Use Only

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