Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावार्थ: चत्तारि य कोडीओ, सत्तेव य हुति सय सहस्साई अडयालीस सहस्सा, चत्तारि मया य वरिसेा ॥ ७१ ॥ छाया - चतसः कोटयः, सप्त च भवन्ति शतसहस्राणि । चत्वारिंशत्सहस्राणि चत्वारि शतानि च वर्षे ॥ ७१ ॥ : एक वर्ष में चार कोटि सात लाख अड़तालीस हजार और चार सौ उच्छ्वास होते हैं ।। ७१ ।। चचारि य कोडिसया, सच य कोडिओ हुति अवराओ । अडयाल सयसहस्सा, चचालीसं सहस्साई ।। ७२ ।। छाया - चत्वारि कोटिशतानि सा च कोटयः भवन्ति अपराः । अष्टचत्वारिंशच्छतसहसाणि चत्वारिंशत्सह ।। ७२ ।। भावार्थ:—२०७४=२०००० चार अर्बुद सात कोटि अड़तालीस जख और चालीस हजार उच्छवास सौ वर्ष की आयु वाले प्राणी के होते हैं ॥ ७२ ॥ वासस्याउस्से उसासा, इत्तिया मुणेयच्चा । पिच्छह आउस खयं, अहोगिस झिज्झमाणस्स ।। ७३ ।। छाया — वर्षशतायुष्कस्योच्छवासाः इयन्तो ज्ञातव्याः । पश्यतायुषः क्षय, महर्निशं क्षीयमाणस्य ॥ ७३ ॥ भावार्थ:- हे भव्य जीवो! सौ वर्ष की आयु वाले पुरुष के इतने ही होते हैं। रात दिन तय होते हुए आयु के क्षय की ओर दृष्टिपात करो ।। ७३ ।। " राइदिए तीसं तु मुहुत्ता, नव सयाई मासेणं । हायंति पमत्ताणं, न य णं अबुद्दा विवाति ॥ ७४ ॥ छाया - रात्रिन्दिवेन त्रिंशन्मुहूचीः, नय शतानि मातेन । हीयन्ते प्रमशानों, न चाबुधाः विजानन्ति ॥ ७४ ॥ For Private And Personal Use Only ५३

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