Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 56
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाया - अथवा तु पुच्छ्वाला, द्विवर्ष जातायाः गज करेणोः । द्वौ बालावभनौ, ज्ञातव्यं नालिकाच्छिद्रम् ॥ ६४ ॥ भावार्थ:-दो वर्ष के हाथी के बच्चे के पूँछ के दो बाल जो टूटे हुए नहीं हैं उनके समान घड़ी का छिद्र होना चाहिये ।। ६४ ।। अहवा सुवण मासा, चत्तारि सुवट्टिया घणा सूई । चउरंगुलप्पमाणा, वायव्वं नालियाच्छिदं ॥ ६५ ॥ छाया - अथवा सुवर्णमाषाश्चत्वारः सुवर्तिता घना सूचिः । चतुरङ गुलप्रमाणा, ज्ञातव्यं नालिकाद्रिम् ।। ६५ ।। भावार्थ:- अथवा चार मासा सोना के बराबर एक वर्तुलाकर (गोल) और पन सुई होती है। उस सुई का प्रमाण चार अङ्गल का होता है। उसके समान घड़ी का छिद्र होना चाहिये ।। ६५ ।। उदगस्स नालियाए, इवंति दो आढयाश्र पमाणं । उदगं य भाणियव्यं, जारिसयं तं पुणो वुच्छं ॥ ६६ ॥ छाया - उदकस्य नालिकायाः भवतो द्वावादको प्रमाणम् । उदकच गणितव्यं, यादृशकं तत्पुनर्वक्ष्ये ॥ ६६ ॥ भावार्थ - घड़ी के अन्दर दो आढक जल भरना चाहिये। वह जल जिस तरह का होना चाहिये वह बताया जाता है ॥ ६६ ॥ उदगं खलु खायचं, कायव्यं दूसपट्टपरिपूयं । मेहोदगं पसरणं, सारहयं वा गिरिगईए ॥ ६७ ॥ छाया - उदकं खलु ज्ञातव्यं कर्त्तव्यं दूष्यपट्टपरिपूतम् । मेचोदकं प्रसन्नं, शारदिकं वा गिरिनद्याः ॥ ६७ ॥ For Private And Personal Use Only **********ESS.EDKEBEARD ५१

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