Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 29
________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya.seKailassagarsunGyanmandir २४ तइयं य दसं पत्तो, पंच काम गुणे गरो । समत्थो भुजिउं भोए, जह से अस्थि घरे धुवा ॥३४॥ छाया-तृतीयाच दशा प्राप्ता, पञ्च कामगुणान्नरः । समर्थो भोक्तु भोगान , यदि तस्यास्ति रहे धुधा ॥३४॥ भावार्थ-तृतीय अवस्था को प्राप्त होकर जीव रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द इन पाँच ही विषयों में आसक्त होता है और वह इन्हें भोग सकता है यदि उसके घर में समृद्धि विद्यमान हो। चउत्थी उ बला णाम, जं णरो दसमस्सियो । समत्थो बलं दरिसेउं, जइ भवे निरुबद्दवो ॥३॥ छाया-चतुथीं तु बला नाम, यो नरो दशा माश्चितः । समर्थों बलं दर्शयितु, यदि भवेनिरुपद्रवः ॥३५॥ भावार्थ-चौथी दशा का का नाम बला है, उसको प्राप्त होकर जीव अपना बल दूसरे को दिखा सकता है, यदि वह नीरोग हो। पंचमी उ दस पत्तो, आणुपुबीए जो सरो। समत्थोऽत्थं विचिंतेउं, कुडवं चाभिगच्छह ॥३६॥ छाया–पञ्चमी तु दशा प्राप्तः, आनुपूल्यों यो नरः । समथाँऽथ विचिन्तयितु', कुटुम्बञ्चाभिगच्छति ॥३६॥ भावार्थ-मनुष्य पाचवी दशा को प्राप्त होकर द्रव्य की चिन्ता करता है और कुटुम्ब की चिन्ता में निमग्न होता है। छट्ठी उ हापणी णामा, जं गरो दसमस्सियो। विरज्जइ उ कामेसु, ईदिएसु य हायडू ॥३७॥ छाया-षष्ठी त हापनी नाम्नौं, या नरो दशामाश्रितः । विरज्यते च कामेषु, इन्द्रियेषु च हीयते।। भावार्थ-ठी दशा का नाम हापनी है। इस दशा को प्राप्त होकर मनुष्य विषय भोग से विरक्त हो जाता है और उसकी इन्द्रियाँ | भी बलहीन हो जाती हैं। For Private And Personal use only

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