Book Title: Tandulvaicharik Prakirnakam
Author(s): Ambikadutta Oza
Publisher: Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha

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Page 39
________________ Sun Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir वजि तनिरुलेपाः छायोद्योतितालागाः वनऋषभनाराचसंहननाः समचतुरस्त्र संस्थान संस्थिताः षड़धनुः सहस्राण्यव॑मच्चत्वेन प्रज्ञप्ता: ते मनजाः द्विषट्पञ्चाशत् पृष्टकरण्डकशताः प्रज्ञप्ताः श्रमणायष्मन ! ते मनुजाः प्रकृतिभद्रकाः प्रक्रतिविनीताः प्रकृत्यूपशान्ताः प्रकृतिप्रतनुकोधमानमायालोमाः मृदुमार्दव सम्पन्नाः बालीनाः भद्रकाः विनीताः अल्पच्छा: असनिधि सञ्चयाः अचण्डाः असिमषिकृषिवाणिज्य विवर्जिताः विडिमान्तरनिवासिनः ईप्सितकामकामिना गेहाकारवक्ष कृतनिलयाः पृथिवीपुष्पफलाहाराः ते मनुजगणाः प्रज्ञाप्ताः ।। भावार्थ-हे आयुष्मन श्रमण ! प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रारा में मनुष्य नीरोग होते थे । उनको न तो कभी ज्वर आदि व्याधियाँ उत्पन्न होती थी और न कभी तत्काल प्राणों को हरण करने वाले शूल आदि पातक ही सत्पन्न होते थे। वे कई लाख वर्ष तक जीते रहते थे । जैसे कि जगलिये, तीर्थक्कर, चक्रवर्ती, बलदेव वासुदेव, चारण और विद्याधर । इन मनुष्यों का रूप बहुत ही मनोहर तथा दृष्टि को लोभित करने वाला श्री । ये लोग उत्तमोत्तम भोगों को भोगने वाले होते थे। उनके अङ्गों में भोगों की सूचना देने वाले स्वस्तिक आदि शुभ लक्षण विद्यमान होते थे। इनके सभी अज सुन्दरता से उत्पन्न और परम सुन्दर होते थे। इनके हाथ और पैर की अङ्गलियाँ लाल कमल की तरह रक्तवर्ण और कोमल होती थी। उनके हाथ और पैर के तलवे कमल के समान कोमल और पर्वत, नगर, माली, समुद्र, चक्र, चन्द्रमा और मा के समान आकार वाली रेखाओं से युक्त होते थे। इनके चरण कछुए की तरह बराबर और कमशः वृद्धि को प्राप्त होते थे। इनके पैर की अङ्गलियाँ सुन्दर और स्थूल होती थी इनके नख रक्तवर्ण उमत सूक्ष्म और चमकीले होते थे। इनके पैर के गुल्फ छिपे हुए, जुत्तम आकृति वाले और सन्दरता पूर्ण जमे हुए होते थे। जैसे हरिणी की जा और कुरूचिन्द नामक तृण क्रमशः स्थूल और गोल होते हैं उसी तरह इसकी जवायें गोल और क्रमशः स्थूल For Private And Personal Use Only

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